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June 19, 2025 12:59 am

एक ऐसा मंदिर जहां दर्शन झरोखे से होता है और हाथ में प्रसाद भी नहीं दिया जाता

उडुपी का श्रीकृष्ण मंदिर कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध और आध्यात्मिक मंदिरों में से एक है। यह मंदिर विशेष रूप से अपने अनूठे दर्शन प्रणाली और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर सिर्फ पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक आस्था और परंपराओं का प्रतीक है। कनकदास की भक्ति के कारण आज भी भक्त झरोखे से भगवान के दर्शन करते हैं। यहाँ शुद्धता और अनुशासन के कारण प्रसाद भी सीधे हाथ में नहीं दिया जाता। यह मंदिर भारतीय संस्कृति, भक्ति और सेवा की महान परंपरा का जीवंत प्रमाण है।

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का महत्व और इतिहास

  • स्थापना: यह मंदिर 13वीं शताब्दी में श्री माधवाचार्य (Dvaita वेदांत के प्रवर्तक) द्वारा स्थापित किया गया था।
  • विशेषता: यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप में मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।
  • अनूठी परंपरा: अन्य मंदिरों के विपरीत, यहाँ मुख्य दरवाजे से दर्शन नहीं होते हैं, बल्कि “कन्हा कट्टी” (छोटे झरोखे) से दर्शन किए जाते हैं।

मंदिर में मुख्य दरवाजे से दर्शन क्यों नहीं होते?

श्रीकृष्ण मंदिर में भक्तों को सीधे मुख्य द्वार से भगवान के दर्शन करने की अनुमति नहीं होती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है—

कथा: भक्त कनकदास और झरोखे से दर्शन की परंपरा

  • कनकदास भगवान कृष्ण के परम भक्त थे, लेकिन वे दलित समुदाय से आते थे।
  • मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध होने के कारण उन्हें अंदर आने की अनुमति नहीं थी।
  • उन्होंने मंदिर के बाहर बैठकर भक्ति की और अपने भावपूर्ण भजनों से भगवान को प्रसन्न किया।
  • उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति 180 डिग्री घूम गई और पीछे की दीवार में एक झरोखा बन गया।
  • तब से यह झरोखा “कन्हा कट्टी” (कनकदास झरोखा) कहलाने लगा और भक्तों को यहीं से दर्शन करने की परंपरा शुरू हुई।

👉 इसलिए, आज भी श्रद्धालु इसी झरोखे से भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं।

मंदिर में हाथ से प्रसाद क्यों नहीं दिया जाता?

  • शुद्धता की परंपरा: उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर में भोजन और प्रसाद तैयार करने की परंपरा अत्यंत शुद्ध और अनुशासित होती है।
  • विशेष नियम: यहां यति (संत) लोग प्रसाद तैयार करते हैं और इसे केवल पत्ते के पात्र या पात्रों में ही वितरित किया जाता है।
  • हाथ में नहीं दिया जाता: इसे हाथ में देने की बजाय श्रद्धालु अपने पात्र में ही ग्रहण करते हैं, जिससे शुद्धता बनी रहे।

मंदिर की अन्य विशेषताएँ

  1. अष्ट मठों का महत्व:

    • उडुपी मंदिर की देखरेख 8 मठों (अष्ट मठ) द्वारा की जाती है।
    • हर 2 साल में मठों के प्रमुख पुजारियों के बीच “पर्याय उत्सव” होता है और नया मठ प्रमुख मंदिर की सेवा करता है।
  2. अन्नदान परंपरा:

    • यहाँ निःशुल्क भोजन (अन्नछत्र) की परंपरा है, जो किसी भी जाति-धर्म के भेदभाव के बिना सभी को दिया जाता है।
  3. रथोत्सव (रथ यात्रा):

    • मंदिर में वार्षिक रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति को भव्य रथ में विराजित कर नगर भ्रमण कराया जाता है।

 

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