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02/10/2025 9:01 pm

पितृपक्ष-श्राद्ध और तर्पण की आवश्यकता क्यों ?

हमारे देश की ऐसी परंपरा है कि हम आने वाले  बच्चों को भी पूजा करते है. जो जीवित है उसकी भी पूजा करते है और गुजर चुके हैं उसकी भी पूजा करते हैं. भारत की संस्कृति में पूर्वजों का स्मरण केवल परंपरा ही नहीं बल्कि आत्मिक जिम्मेदारी भी माना जाता है। हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पितृपक्ष 8 सितम्बर से 21 सितम्बर तक चलेगा। इन 15 दिनों को महालय या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते हैं, ताकि पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त हो। धर्मशास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से अपने पितरों का तर्पण करता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि और संतानों का कल्याण होता है।

श्राद्ध और तर्पण की आवश्यकता क्यों?

हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि जब हम अपने पूर्वजों को को जल, अन्न और वस्त्र अर्पित करते हैं तो वह केवल प्रतीकात्मक क्रिया नहीं होती, बल्कि यह आत्मीय संबंध की पुनर्पुष्टि है। पितृपक्ष का आधार यही है कि जीवित वंशज अपने दिवंगत पितरों को स्मरण कर आभार व्यक्त करें। यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश विस्तृत विधि से श्राद्ध नहीं कर पाता, तो वह केवल आकाश की ओर हाथ उठाकर भावपूर्वक यह कह सकता है – “हे मेरे पितृपुरुष! मैं अपनी श्रद्धा आपको अर्पित करता हूँ, आप प्रसन्न हों।” यह सरलतम तर्पण भी शास्त्रानुसार फलदायी माना गया है।

शास्त्रों में श्राद्ध विधान

हमारे शास्त्र यानि विष्णुपुराण, वराहपुराण और अनेक धर्मग्रंथों में श्राद्ध की महिमा और विधि को विस्तार से बताया गया है. वही विष्णुपुराण में कहा गया है कि श्राद्ध में अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान और तर्पण किया जाए। यदि कोई व्यक्ति सक्षम है तो वह वस्त्र, अन्न, धन और गौदान कर सकता है। लेकिन यदि वह असमर्थ है तो केवल जलांजलि, तिल और श्रद्धा से भी पितरों की तृप्ति हो सकती है। यहाँ तक कि यदि किसी के पास कुछ भी न हो, तो वह जंगल में जाकर हाथ ऊपर उठाकर सूर्य और लोकपालों को साक्षी मानकर कहे कि मेरे पास अर्पण करने के लिए कुछ नहीं, परंतु मैं श्रद्धा से पितरों को स्मरण कर रहा हूँ। यह भावनात्मक तर्पण भी पितरों को प्रसन्न करता है।

तर्पण की विधि

पितृपक्ष में तर्पण का विशेष महत्व है। यज्ञोपवीत धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन संध्या में गायत्री मंत्र के साथ तर्पण करता है। जिनके पिता का देहांत हो चुका है, वे विशेष रूप से इस काल में अपने पिता, पितरों और मातरों को जल अर्पित करते हैं। तर्पण के लिए प्रायः गंगाजल, स्वच्छ जल, काले तिल, कुशा और श्वेत पुष्प का उपयोग किया जाता है। पितृपक्ष के पहले दिन से लेकर अपने पिता की पुण्यतिथि तक प्रतिदिन तर्पण करना चाहिए। इसके बाद अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर सभी दिवंगत पितरों, माताओं और परिवार के अन्य जनों का सामूहिक श्राद्ध किया जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, जिसमें प्याज, लहसुन और मांसाहार का प्रयोग नहीं होता। सात्त्विक भोजन, वस्त्र और दक्षिणा अर्पित करना शुभ माना जाता है।

श्राद्ध और तर्पण का आध्यात्मिक लाभ

श्राद्ध और तर्पण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भावनात्मक और मानसिक शांति का साधन है। जब हम अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं तो हमारी आत्मा नम्रता और कृतज्ञता से भर उठती है। यह संस्कार हमें परिवार और परंपरा से जोड़े रखता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो लोग पितृपक्ष में श्राद्ध नहीं करते, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। यह दोष जीवन में संतान सुख में बाधा, आर्थिक संकट और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है। वहीं, श्राद्ध और तर्पण करने से पितृदोष शांति प्राप्त करता है और जीवन में समृद्धि आती है।

आधुनिक जीवन में श्राद्ध का महत्व

आज की व्यस्त जीवनशैली में कई लोग यह सोचते हैं कि श्राद्ध केवल परंपरा है। परंतु यदि इसे गहराई से समझें तो यह आत्मा और वंश परंपरा का आध्यात्मिक संवाद है। पितरों को स्मरण करना और उनके लिए दान देना परिवारिक एकता और आत्मिक उन्नति का प्रतीक है। यदि कोई व्यक्ति विधिवत श्राद्ध न कर पाए तो केवल श्रद्धा से जलांजलि, तिलांजलि या भोजन का अर्पण भी पर्याप्त है। पितृपक्ष का मूल संदेश यही है कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार प्रकट किया जाए। यह अवसर हमें यह भी सिखाता है कि हमारी जीवनशैली और संस्कार केवल हमारे लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मार्गदर्शन हैं।

पितरों को स्मरण

पितृपक्ष 2025, 8 सितम्बर से 21 सितम्बर तक मनाया जाएगा। इस अवधि में श्राद्ध और तर्पण करना हर गृहस्थ का परम कर्तव्य माना गया है। चाहे व्यक्ति सक्षम हो या असमर्थ, शास्त्रों ने हर स्थिति में पितरों को स्मरण और तर्पण का मार्ग बताया है। यदि हम श्रद्धा और आस्था से पितरों का स्मरण करेंगे तो निश्चित ही हमें जीवन में सुख, शांति और संतानों का कल्याण प्राप्त होगा। इसलिए, इस पितृपक्ष में समय निकालकर अपने पूर्वजों को स्मरण करें, तर्पण करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। यही हमारी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।

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