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02/10/2025 2:41 pm

डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन से बचाव का देसी राज़ !

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन यानी ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियाँ हर घर की समस्या बन चुकी हैं। 1990 के दशक से पहले तक ये बीमारियाँ गिने-चुने लोगों को होती थीं लेकिन अब हालात ये हैं कि शहर के लगभग हर घर में कोई न कोई सदस्य इनका शिकार है। सवाल ये उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियाँ आम हो गईं? जवाब सीधा है—हमारी जीवनशैली और खानपान में बदलाव।

इन्हीं बदलावों के बीच एक आदत धीरे-धीरे गायब हो गई—दातून करने की परंपरा। गाँवों में आज भी लोग नीम, बबूल या करंज की दातून का इस्तेमाल करते हैं लेकिन शहरों में इसे पिछड़ेपन की निशानी मान लिया गया। यही वजह है कि गाँव में डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन के मरीज बहुत कम दिखते हैं, जबकि शहरों में इनकी बाढ़ आ चुकी है।

टूथपेस्ट और माउथवॉश की हकीकत

बाज़ार में आने वाले टूथपेस्ट और माउथवॉश ने हमें दांतों की सफाई का नया विकल्प दिया। ये कंपनियाँ दावा करती हैं कि इनके प्रोडक्ट 99.9% बैक्टीरिया को खत्म कर देते हैं। पहली नज़र में यह सुनकर अच्छा लगता है, लेकिन असलियत में यही हमारे लिए सबसे खतरनाक साबित हो रहा है।

हमारे मुँह में कई तरह के सूक्ष्मजीव मौजूद रहते हैं। कुछ हानिकारक होते हैं, लेकिन कई लाभकारी भी होते हैं। माउथवॉश और टूथपेस्ट की तेज़ एंटीमाइक्रोबियल क्षमता इन लाभकारी बैक्टीरिया को भी नष्ट कर देती है। यही बैक्टीरिया शरीर के नाइट्रेट (NO3-) को नाइट्राइट (NO2-) और फिर नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) में बदलने का काम करते हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड हमारी रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है।

जब ये बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं तो शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड का स्तर घट जाता है। इसका सीधा असर ब्लड प्रेशर और इंसुलिन रेसिस्टेंस पर पड़ता है। यही वजह है कि टूथपेस्ट और माउथवॉश का ज़्यादा इस्तेमाल डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन को बढ़ावा देता है।

रिसर्च क्या कहती है?

नाइट्रिक ऑक्साइड और ब्लड प्रेशर के बीच संबंध को लेकर कई रिसर्च सामने आई हैं। जर्नल ऑफ क्लिनिकल हाइपरटेंशन (2004) में छपे एक रिव्यू आर्टिकल ने स्पष्ट बताया कि नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी सीधे तौर पर हाई ब्लड प्रेशर की वजह बनती है।

इतना ही नहीं, ब्रिटिश डेंटल जर्नल में 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन ने यह तक साबित कर दिया कि जो लोग दिन में दो बार से अधिक माउथवॉश का इस्तेमाल करते हैं, उनमें तीन साल के भीतर प्रीडायबिटिक या डायबिटीज़ की स्थिति विकसित हो जाती है।

दातून का विज्ञान और फायदे

अब सवाल उठता है कि दातून इस समस्या से कैसे बचाती है? नीम और बबूल की दातून पर जर्नल ऑफ क्लिनिकल डायग्नोसिस एंड रिसर्च में छपी एक क्लिनिकल स्टडी बताती है कि ये स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकती हैं। यही बैक्टीरिया दांतों में कैविटी और सड़न का कारण बनते हैं।

दातून की सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये मुँह के हानिकारक बैक्टीरिया को नियंत्रित करती है लेकिन उन सूक्ष्मजीवों को नुकसान नहीं पहुँचाती जो नाइट्रिक ऑक्साइड बनाने में मदद करते हैं। यही कारण है कि दातून मुँह की सफाई करने के साथ-साथ शरीर के लिए भी लाभकारी है।

इसके अलावा दातून इस्तेमाल करने पर लार का स्राव अधिक होता है। आदिवासी परंपरा के अनुसार, दातून से रगड़ाई करने के बाद लोग बार-बार थूकने के बजाय लार को निगलते जाते हैं। लार में मौजूद एंज़ाइम और नाइट्रेट्स हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं।

क्यों ज़रूरी है दातून की वापसी

आज के समय में जब हर दूसरा इंसान ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों से जूझ रहा है, तो हमें अपनी पुरानी परंपराओं की ओर लौटना ही होगा। दातून सिर्फ दाँतों की सफाई का साधन नहीं, बल्कि यह हमारे पूरे शरीर के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।

गाँवों में आज भी बुजुर्ग दातून करते हैं और सौ साल तक स्वस्थ जीवन जीते हैं। इसके विपरीत, शहरों में महंगे टूथपेस्ट और माउथवॉश का इस्तेमाल करने वाले लोग कम उम्र में ही बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

अगर हम सच में स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो हमें दातून की तरफ लौटना ही होगा। यह न केवल दांतों और मसूड़ों को मज़बूत बनाएगी, बल्कि डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव भी करेगी।

निष्कर्ष

हमने बाज़ार के उत्पादों पर भरोसा करके अपनी परंपरा और प्राकृतिक उपायों को छोड़ दिया। इसका नतीजा हमारे सामने है—हर घर में डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर के मरीज। लेकिन अभी भी वक्त है कि हम वापसी करें। नीम और बबूल जैसी दातून को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।

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