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16/12/2025 3:33 pm

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आलिम–फ़ाज़िल डिग्री विवाद: उर्दू शिक्षक संघ ने सरकार से समाधान की माँग की, आंदोलन की चेतावनी

झारखंड में आलिम एवं फ़ाज़िल डिग्रियों की मान्यता का मुद्दा अचानक गंभीर रूप धारण कर चुका है। राज्य में हजारों उर्दू अभ्यर्थी पिछले कई वर्षों से इस डिग्री पर आधारित नियुक्तियों की प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं। लेकिन हाल ही में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) और राज्य विधि विभाग द्वारा उठाई गई आपत्तियों ने इस डिग्री की वैधता पर सवाल खड़े कर दिए। इस विवाद के चलते उर्दू TET पास अभ्यर्थियों की अंतिम सूची रोकी गई है, जिससे उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है।

उर्दू शिक्षक संघ की सक्रियता — एक शिष्टमंडल ने उठाई आवाज़

20 नवंबर 2025 को झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय महासचिव अमीन अहमद के नेतृत्व में झारखंड राज्य अल्पसंख्यक कल्याण आयोग के उपाध्यक्ष ज्योति सिंह मथारू से मिला। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य था — सरकार द्वारा आलिम–फ़ाज़िल डिग्री को मान्यता देने में हो रही देरी और विरोधाभासी निर्णयों के प्रति गंभीर चिंता जताना। शिष्टमंडल में प्रमुख रूप से मौजूद थे —मो० फखरुद्दीन, शहज़ाद अनवर, एनामुल हक़, मकसूद जफर हादी।

2006 की अधिसूचना — सरकार ने पहले ही दे रखी है मान्यता

उर्दू शिक्षक संघ ने बताया कि वर्ष 2006 में झारखंड अधिविद्य परिषद (JAC) ने अधिसूचना संख्या 3233/06 के माध्यम से आलिम व फ़ाज़िल की डिग्री को मान्यता दे दी थी। ये परीक्षाएँ स्वयं JAC द्वारा राज्य सरकार की निगरानी में आयोजित की जाती हैं। ऐसे में विधि विभाग की नई आपत्तियाँ “सरकारी निर्णय का विरोधाभास” प्रतीत होती हैं।

पिछली भर्तियों में भी मान्यता दी गई थी — फिर अब क्यों विवाद?

संघ ने यह भी बताया कि— 19 अप्रैल 2023 की JSSC अधिसूचना के तहत स्नातक प्रशिक्षित उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति इसी आलिम–फ़ाज़िल डिग्री पर आधारित हुई थी। इससे स्पष्ट है कि सरकार और आयोग पहले इसे वैध मान चुके हैं। फिर अब अचानक मान्यता पर संदेह क्यों?

काउंसलिंग पूरी, लेकिन अंतिम सूची रोकी गई — अभ्यर्थी परेशान

उर्दू TET (6–8) पास उम्मीदवारों की काउंसलिंग हो चुकी है, लेकिन— अंतिम चयन सूची नहीं जारी की जा रही। विभाग का तर्क है कि— “मौलवी परीक्षा के बाद स्नातक की डिग्री अनिवार्य है।” संघ ने इसे पूर्णत: अवैध, निराधार और 2006 के सरकारी आदेश का उल्लंघन बताया।

संघ ने सरकार पर लगाया भेदभाव का आरोप

केंद्रीय महासचिव अमीन अहमद और केंद्रीय प्रवक्ता शहज़ाद अनवर ने कहा— यह मुद्दा केवल तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के योग्य अभ्यर्थियों को नियोजन से वंचित करने का प्रयास है। सरकार के विधि विभाग और JSSC द्वारा बार-बार आपत्तियाँ उठाना उर्दू भाषी विद्यार्थियों के साथ भेदभाव जैसा प्रतीत होता है।

ज्योति सिंह मथारू का आश्वासन — जल्द होगा समाधान

अल्पसंख्यक कल्याण आयोग के उपाध्यक्ष ज्योति सिंह मथारू ने उर्दू अभ्यर्थियों की इस परेशानी को गंभीर मामला बताया और कहा— “मैं सरकार के समक्ष इस मुद्दे को तत्काल उठाऊँगा और जल्द समाधान सुनिश्चित करूँगा।” उनका यह आश्वासन अभ्यर्थियों में नई उम्मीद लेकर आया है।

सरकार से संघ की तीन प्रमुख माँगें

पहली माँग — आलिम–फ़ाज़िल डिग्री की मान्यता और नई व्यवस्था

सरकार JAC से दी गई सभी आलिम–फ़ाज़िल डिग्रियों को तुरंत मान्यता दे और रांची विश्वविद्यालय को इस परीक्षा को संचालित करने की अनुमति दे।

दूसरी माँग — 2006 की अधिसूचना का पालन

मान्यता देने वाली अधिसूचना संख्या 3233/06 का अनिवार्य रूप से पालन कराया जाए।

तीसरी माँग — विधि विभाग और JSSC की गलत व्याख्या वापस ली जाए

आलिम–फ़ाज़िल डिग्री पर सवाल उठाने वाली सभी आपत्तियाँ तुरंत वापस ली जाएँ।

अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर—समय पर निर्णय जरूरी

उर्दू TET पास अभ्यर्थियों की पूरी भर्ती प्रक्रिया “रुकी हुई ट्रेन” की तरह ठहर गई है। अगर सरकार शीघ्र निर्णय नहीं लेती, तो हजारों योग्य अभ्यर्थियों का भविष्य प्रभावित हो सकता है।

संघ का चेतावनी भरा रुख — जल्द हुआ न समाधान तो आंदोलन

संघ ने स्पष्ट कहा कि— यदि सरकार इस दिशा में शीघ्र सकारात्मक कदम नहीं उठाती, तो उर्दू शिक्षक संघ राज्यव्यापी आंदोलन करने को मजबूर होगा। यह चेतावनी सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

इस निर्णय का असर पूरे समुदाय पर पड़ेगा

आलिम–फ़ाज़िल की डिग्री केवल शिक्षण नियुक्ति से जुड़ी नहीं है। यह उर्दू शिक्षा, मदरसा विकास और अल्पसंख्यक समुदाय की प्रगति से भी जुड़ा विषय है। ऐसे में इसका निराकरण सरकार की अल्पसंख्यक नीति पर भी बड़ा असर डालेगा।

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