अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे अबूझ मुहूर्त (ऐसा समय जो हर दृष्टि से शुभ हो) कहा गया है। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ होता है – जो कभी क्षय (नष्ट) न हो, अर्थात् इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य या दान अनन्त फल देने वाला होता है।
धार्मिक कारण
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त्रेतायुग का आरंभ
मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। त्रेतायुग में भगवान राम का जन्म हुआ, जिससे यह तिथि पवित्र मानी जाती है। -
परशुराम जयंती
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसलिए इसे परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। -
महाभारत का लेखन प्रारंभ
कहा जाता है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास ने गणेशजी से महाभारत लिखवाना शुरू किया था। इससे यह दिन ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा से भी जुड़ गया। -
भगवान कृष्ण और सुदामा की कथा
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को बिना कहे ही सम्पत्ति प्रदान की थी। इसलिए इसे दयालुता और धन-प्राप्ति का भी प्रतीक माना गया। -
पांडवों को अक्षय पात्र प्राप्त हुआ
वनवास के दौरान पांडवों को इसी दिन भगवान सूर्य से अक्षय पात्र मिला था जिससे उन्हें कभी भोजन की कमी नहीं हुई। -
दान और पुण्य का महत्व
इस दिन गंगा स्नान, अन्न, जल, वस्त्र, सोना आदि का दान अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यह मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कभी नष्ट नहीं होता और जीवनभर शुभ फल देता है।
इस दिन सोना क्यों खरीदा जाता है?
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धार्मिक कारण
सोना धन, समृद्धि और मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया को यदि आप सोना खरीदते हैं तो वह संपत्ति कभी नष्ट नहीं होती, और उसमें साल दर साल वृद्धि होती है। यह अक्षय लक्ष्मी का आह्वान माना जाता है। -
गृहस्थ जीवन की शुभ शुरुआत
अक्षय तृतीया पर विवाह, गृहप्रवेश, जमीन खरीदना या नया व्यवसाय आरंभ करना शुभ होता है। सोना खरीदकर लोग इस शुभ शुरुआत को स्थायित्व प्रदान करने की भावना रखते हैं।
वैज्ञानिक कारण
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ऋतु परिवर्तन का समय
अक्षय तृतीया गर्मियों के मध्य में आती है, जब सूर्य की किरणें अधिक तीव्र हो जाती हैं। यह समय शरीर को डिटॉक्स करने और मानसिक शांति के लिए ध्यान, उपवास, और दान जैसे क्रियाकलापों के लिए उपयुक्त माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह शरीर और मन के संतुलन को पुनः स्थापित करने का समय होता है। -
धन-संचय और कृषि की तैयारी
भारत में यह समय रबी की फसल कटने और खरीफ की फसल की तैयारी का होता है। ग्रामीण लोग अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त करने के लिए सोने या अन्य स्थायी संपत्तियों में निवेश करते हैं। -
धातु क्रय का प्रतीकात्मक अर्थ
पारंपरिक भारतीय समाज में धातुएं जैसे सोना, चांदी न केवल धन का प्रतीक थीं, बल्कि उन्हें सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता था। अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना भविष्य के लिए सुरक्षा कवच तैयार करने का संकेत माना जाता है।
निष्कर्ष
अक्षय तृतीया न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह दिन जीवन में शुभता, समृद्धि, और स्थायित्व का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ इसके पीछे छुपे वैज्ञानिक तथ्यों के कारण भी यह पर्व विशेष महत्व रखता है।
