इस वर्ष अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम जयंती 30 अप्रैल, दिन बुधवार को मनाया जाएगा,अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो। यह दिन संकल्प, दान, जप, तप और शुभ कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए कार्यों का फल चिरस्थायी होता है। यही कारण है कि लोग इस दिन स्वर्ण, भूमि, वाहन, और अन्य स्थायी वस्तुओं की खरीदारी करते हैं।
सोने की खरीदारी, दान, यज्ञ और अन्य धार्मिक कार्य करें
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, पांडवों को श्रीकृष्ण द्वारा अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी और यही तिथि त्रेता युग के प्रारंभ की मानी जाती है। अक्षय तृतीया जिसे आखा तीज भी कहा जाता है इसे अबूझ मुहूर्त कहा गया है जहाँ किसी भी शुभ कार्य के लिए विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती। यह दिन विशेष रूप से सोने की खरीदारी, दान, यज्ञ और अन्य धार्मिक कार्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है इस दिन किए गए कार्यों का पुण्य अक्षय रहता है, अक्षय तृतीया का ही दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिवस भी रहता है तथा इस दिन परशुराम जयंती पूरे देश में उल्लास पूर्वक मनाया जाता है।
परशुराम के मंत्रों का जाप करें
परशुराम जयंती का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है इस दिन भगवान परशुराम की पूजा करने से व्यक्ति को शौर्य, बल,और न्याय की प्राप्ति होती है। भगवान परशुराम के मंत्रों का जाप करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है परशुराम महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। परशुराम को ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय धर्म के प्रतीक माना जाता है। वे शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत थे। अत्याचारी क्षत्रियों के विनाश के लिए उन्होंने धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया था।परशुराम न केवल एक योद्धा थे, बल्कि वे न्याय और धर्म के रक्षक भी थे। उनके द्वारा स्थापित आदर्श आज भी समाज को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने की प्रेरणा देते हैं। वे चिरंजीवी माने जाते हैं, और ऐसी मान्यता है कि वे आज भी हिमालय में तपस्या में लीन हैं।
विशेष मंत्रों और आरती का पाठ करें
इस पावन दिन पर प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान परशुराम की पूजा करें। विशेष मंत्रों और आरती का पाठ करें। इस दिन दान,विशेष कर जल, अन्न, वस्त्र, स्वर्ण और गाय का दान अत्यंत पुण्यदायी होता है।अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती केवल पर्व नहीं, बल्कि यह हमारी सनातन संस्कृति के दो स्तंभ हैं। एक हमें पुण्य और समृद्धि का संदेश देता है, तो दूसरा धर्म और साहस का मार्ग दिखाता है। इन पर्वों को श्रद्धा एवं विधिपूर्वक मनाकर हम अपने जीवन को अध्यात्म, शौर्य और स्थायित्व की दिशा में अग्रसर कर सकते है।
