झारखंड के हजारों शिक्षकों के लिए वह ऐतिहासिक दिन तब आया जब माननीय उच्च न्यायालय ने उत्क्रमित वेतनमान (Upgraded Pay Scale) से जुड़ी वर्षों पुरानी लड़ाई को न्यायिक स्वरूप देते हुए स्पष्ट आदेश जारी किया। यह निर्णय न केवल आर्थिक रूप से कमजोर पड़े शिक्षकों के लिए राहत लेकर आया, बल्कि शिक्षकों के संघर्ष, धैर्य और एकजुटता की मिसाल भी बन गया।
लगातार पंद्रह वर्षों से लंबित इस मुद्दे पर न्यायालय ने राज्य सरकार को आठ सप्ताह के भीतर सभी प्रभावित शिक्षकों का वेतन निर्धारण करने और आगामी चार सप्ताह में बकाया राशि का भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। यह क्षकों के आर्थिक सम्मान की दिशा में बड़ी उपलब्धि है।
कैसे शुरू हुआ संघर्ष?
छठे वेतन आयोग की अनुशंसाओं में शिक्षकों के लिए मूल वेतनमान 4500–7000 से 6500–10500 करने का प्रावधान था। यह सुधार शिक्षकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे उनके वेतन और पेंशन दोनों में बड़ा अंतर पड़ता।
लेकिन राज्य सरकार द्वारा इसे लागू करने में कई वर्षों तक टालमटोल किया गया।
13 अगस्त 2014 की अधिसूचना के द्वारा इसका लाभ आंशिक रूप से देते हुए भी वित्त विभाग के 11 सितंबर 2014 के पत्रांक 3251 के माध्यम से पुनः रोक लगा दी गई, जिससे शिक्षक असमंजस में पड़े रहे।
अंततः अनुग्रह कुमार एवं अन्य (WP(S) 2022/2014) तथा सुधीर कुमार सिंह एवं अन्य (5897/2014) द्वारा मामला उच्च न्यायालय में लाया गया, जिसके बाद न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
संयुक्त शिक्षक मोर्चा की बैठक: निर्णय और रणनीति
धुर्वा स्थित कार्यालय में हुई राज्य स्तरीय बैठक में झारखंड प्रदेश संयुक्त शिक्षक मोर्चा ने इस आदेश का स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत बताया। बैठक की अध्यक्षता मोर्चा के प्रदेश संयोजक अमीन अहमद ने की।
मोर्चा ने निर्णय लिया कि:
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वित्त सचिव एवं शिक्षा सचिव को ज्ञापन देकर तुरंत सभी 25 प्रार्थियों को फिटमेंट टेबल का लाभ दिया जाए।
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सरकार से आग्रह किया जाएगा कि अन्य सभी शिक्षकों को भी समान लाभ प्रदान किया जाए।
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आगामी रणनीति को मजबूत करने के लिए 21 दिसंबर 2025 को महावीर नगर स्थित शांति निवास में अगली बैठक आयोजित की जाएगी।
यह निर्णय शिक्षकों में नई ऊर्जा और उम्मीद लेकर आया है।
मोर्चा और महासंघ की भूमिका: सड़क से लेकर अदालत तक संघर्ष
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ और संयुक्त शिक्षक मोर्चा वर्षों से इस मुद्दे पर लड़ाई लड़ते आ रहे थे। कई बार विभागीय बैठकों, सम्मेलनों और धरनों के माध्यम से शिक्षकों की आवाज सरकार तक पहुंचाई गई।
लेकिन आश्वासनों के बावजूद जब सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तब शिक्षक प्रतिनिधियों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।
आज अदालत के आदेश ने यह साबित कर दिया कि संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता।
शिक्षकों के लिए आर्थिक राहत और मनोबल में बढ़ोतरी
उच्च न्यायालय के आदेश से न केवल शिक्षकों को लंबे समय से रुका हुआ वेतन मिलेगा, बल्कि उनके पेंशन और मानदेय पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इस फैसले से:
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सेवारत शिक्षकों को तुरंत राहत मिलेगी
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हजारों परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी
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शिक्षण प्रक्रिया में उनका आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ेगा
शिक्षक समाज किसी भी राज्य की रीढ़ होता है; उनके हितों की रक्षा करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
आगामी दिनों की रूपरेखा: कैसे आगे बढ़ेगा आंदोलन?
मोर्चा ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक शिक्षकों को आदेशानुसार लाभ नहीं मिल जाता, तब तक आंदोलन और वार्ता दोनों जारी रहेंगे।
21 दिसंबर की बैठक में:
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राज्यव्यापी रणनीति तय होगी
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अधिकारियों से मुलाक़ात के कार्यक्रम बनाए जाएंगे
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आवश्यक होने पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार की जाएगी
यह लड़ाई केवल 25 प्रार्थियों की नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के शिक्षक समुदाय की है।
न्याय की जीत और शिक्षकों का सम्मान
उत्क्रमित वेतनमान पर उच्च न्यायालय का फैसला न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह न्याय और शिक्षक सम्मान की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।
यह लड़ाई दिखाती है कि जब शिक्षक एक मंच पर एकजुट होते हैं, तो बड़े से बड़ा अन्याय भी समाप्त हो सकता है।
अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह न्यायालय के आदेश का सम्मान करती हुई समयसीमा के भीतर लाभ प्रदान करे।






