भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह वह कालखंड है जब हम अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं और उन्हें जल, तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। वर्ष 2025 में पितृपक्ष 8 सितम्बर से 21 सितम्बर तक रहेगा। इस दौरान हर हिंदू परिवार अपने-अपने पितरों को स्मरण कर कृतज्ञता व्यक्त करता है। पितृपक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पूर्वजों से आत्मिक संबंध बनाए रखने और आने वाली पीढ़ी को यह संस्कार सिखाने का अवसर भी है।
पितृपक्ष की शुरुआत और तिथि का महत्व
बहुत से लोग यह मानते हैं कि पितृपक्ष प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है, लेकिन वास्तव में यदि किसी के पिताजी या पूर्वज की मृत्यु पूर्णिमा को हुई हो तो उनकी तिथि पूर्णिमा ही मानी जाएगी। इसीलिए पितृपक्ष का प्रारंभ पूर्णिमा से करना उचित बताया गया है। इस बार 7 सितम्बर से ही ग्रहण का सूतक लगने के कारण पितृ विसर्जन की प्रक्रिया भी उसी दिन से प्रारंभ करना उपयुक्त माना गया है।
भाइयों को अलग-अलग करना चाहिए तर्पण
अक्सर यह देखा जाता है कि घर का केवल एक ही भाई पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करता है। जबकि सही यह है कि यदि दो या तीन भाई अलग-अलग स्थान पर रहते हैं तो सभी को अपने-अपने स्थान से श्राद्ध करना चाहिए। पिता केवल एक का नहीं बल्कि सभी संतान का होता है, इसलिए हर संतान का यह कर्तव्य बनता है कि वह पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करे।
भावना ही सबसे महत्वपूर्ण है
शास्त्रों में कई नियम और विधियां लिखी गई हैं, लेकिन यदि केवल नियमों का पालन किया जाए और भावना खो जाए तो अनुष्ठान अधूरा माना जाता है। मुख्य बात यह है कि श्राद्ध और तर्पण श्रद्धा और कृतज्ञता के साथ किए जाएं। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यदि पितरों को गया जी या किसी अन्य पवित्र स्थान पर स्थापित कर दिया गया है तो फिर जल अर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यह तर्क उचित नहीं है। यदि आप जल नहीं अर्पित कर पा रहे तो कम से कम सुबह सूर्य को जल अर्पित करें और उनसे प्रार्थना करें कि यह जल आपके पितरों तक पहुंचे।
आने वाली पीढ़ी के लिए संस्कार
श्राद्ध और तर्पण करने का एक बड़ा कारण यह भी है कि अगली पीढ़ी इन परंपराओं को देखे और सीखे। यदि आप अपने बच्चों को यह करते हुए दिखाएंगे, तो उनमें भी यह संस्कार स्वतः विकसित होगा। पितृपक्ष केवल पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी मार्गदर्शन का अवसर है।
सरल विधि से तर्पण
यदि आपके पास समय कम है तो भी आप सरल विधि से तर्पण कर सकते हैं। सुबह दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें। यदि आप जनेऊ धारण करते हैं तो इसे दाहिनी ओर कर लें। चावल और काले तिल अपने पास रखें। पहले दो बूंद जल जमीन पर गिराकर भूमि को शुद्ध मानें। फिर कुशा या सफेद धागा रखकर यह भाव करें कि आपके पूर्वज पधार गए हैं। इसके बाद उन्हें पैर धोने का, धूप दिखाने का, फूल चढ़ाने का और जल अर्पित करने का भाव करें। अंत में प्रणाम कर उनसे प्रार्थना करें कि वे प्रसन्न होकर वापस जाएं और अगले दिन फिर बुलाने का वचन दें। इस प्रकार आप अपने दादा-दादी, परदादा-परदादी, नाना-नानी, सास-ससुर सभी को स्मरण कर सकते हैं।
अमावस्या तक करना क्यों जरूरी है
अधिकांश लोग अपने पिता की तिथि आने तक ही यह क्रिया करते हैं और उसके बाद बंद कर देते हैं। लेकिन वास्तव में हमें अमावस्या तक श्राद्ध करना चाहिए क्योंकि हमें यह नहीं मालूम कि हमारे कौन से पूर्वज किस तिथि को दिवंगत हुए। अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है और इस दिन सभी पितरों का सामूहिक तर्पण किया जाता है।
अज्ञात पितरों के लिए तर्पण
यदि आपको लगता है कि आपके परिवार या समाज में किसी को जल अर्पण नहीं मिल रहा है तो आप अज्ञात पुरुष और अज्ञात स्त्री के नाम से भी जल अर्पण कर सकते हैं। कई बार यह देखा गया है कि भटकी हुई आत्माएं प्यास के कारण परेशान रहती हैं। यदि आप उनकी ओर से जल अर्पण करते हैं तो उन्हें शांति मिलती है।
सूर्य को जल अर्पण और प्रेत मुक्ति
यदि आपके जीवन में कोई ऐसी समस्या है कि कोई आत्मा परेशान कर रही है तो आप पितृपक्ष में सूर्य को जल अर्पित करते समय प्रार्थना कर सकते हैं। सूर्य पितरों के प्रतीक माने गए हैं। उनसे यह प्रार्थना की जा सकती है कि जिस आत्मा को शांति नहीं मिली है, उसे उसके कर्मों के अनुसार मुक्ति दी जाए। इस प्रकार का भावनात्मक तर्पण भी फलदायी सिद्ध होता है।
गया जी में श्राद्ध और सामूहिक संकल्प
पितृपक्ष में बहुत से लोग गया जी जाकर श्राद्ध करते हैं। प्रथा यह है कि यदि कोई व्यक्ति गया जाता है तो गांव या परिवार के लोग उसे चावल, पैसे आदि देकर अपने पितरों का श्राद्ध भी करने को कहते हैं। लेकिन व्यस्तता के कारण वह व्यक्ति केवल अपने पितरों का ही नाम ले पाता है और दूसरों का कार्य अधूरा रह जाता है। इससे बचने के लिए एक सूची बना लेनी चाहिए जिसमें सभी इष्ट-मित्रों और उनके पिता का नाम हो। संकल्प के समय इस सूची का उल्लेख करना चाहिए ताकि सभी का श्राद्ध हो सके। यह छोटी-सी बात बहुत महत्वपूर्ण है और इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर
पितृपक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। चाहे आप विस्तृत विधि से श्राद्ध करें या केवल जल अर्पण, सबसे महत्वपूर्ण है आपकी भावना। यह परंपरा न केवल पितरों की आत्मा को शांति देती है बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी संस्कारों से जोड़ती है। इस पितृपक्ष 2025 में समय निकालकर अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उन्हें जल, अन्न या वस्त्र अर्पित करें। यही उनके प्रति आपकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।