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02/10/2025 6:27 pm

भगवान विष्णु का वराह अवतार – पृथ्वी की रक्षा और पौराणिक महत्व

भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में भगवान विष्णु को पालनहार कहा गया है। जब-जब पृथ्वी पर संकट आया, तब-तब उन्होंने विभिन्न अवतार धारण कर धर्म की रक्षा की। दस अवतारों में से एक है वराह अवतार, जिसे अत्यंत शक्तिशाली और अनोखा माना जाता है। मान्यता है कि जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने पृथ्वी को गर्भोदक सागर में डुबो दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर पृथ्वी को उसके चंगुल से मुक्त कराया। यह कथा केवल पौराणिक प्रसंग ही नहीं है, बल्कि इसमें गहन प्रतीकात्मक और दार्शनिक संदेश भी छिपा है।

वराह अवतार की पौराणिक कथा

श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णन है कि हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से पूरी पृथ्वी को जलमग्न कर दिया था। उसने पृथ्वी को ब्रह्मांडीय महासागर जिसे गर्भोदक सागर कहा गया, उसमें छिपा दिया। इस सागर की चौड़ाई करोड़ों योजन बताई गई है, जिसका आधुनिक हिसाब लगभग 1.5 करोड़ किलोमीटर होता है। कहा जाता है कि यह महासागर इतना विशाल था कि उसमें हजारों पृथ्वियाँ समा सकती थीं।

ऐसे समय में भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया। पौराणिक मान्यता है कि इस रूप में उनकी ऊँचाई लगभग 75,000 किलोमीटर और चौड़ाई 40,000 किलोमीटर थी। इतना विशाल स्वरूप इसलिए आवश्यक था क्योंकि उन्हें उस ब्रह्मांडीय महासागर से पृथ्वी को उठाना था।

वराह रूप क्यों चुना गया

प्रश्न यह उठता है कि भगवान ने वराह का ही रूप क्यों धारण किया। वे किसी और पशु या रूप में भी अवतार ले सकते थे। इसका उत्तर प्रतीकात्मक है। वराह यानी जंगली सूअर, जो कीचड़ और मिट्टी में रहने वाला प्राणी है। उसकी थूथनी इतनी मजबूत होती है कि वह जमीन को खोदकर भीतर छिपी वस्तु निकाल लेता है। इसीलिए भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण किया ताकि वे महासागर की तलहटी में जाकर चट्टानों के नीचे छिपे हिरण्याक्ष को खोज निकालें और पृथ्वी को बचा सकें। यह रूप इस बात का प्रतीक है कि जब संकट गहराई में छिपा हो तो उसे निकालने के लिए उसी तरह की शक्ति और स्वभाव की आवश्यकता होती है।

भूगोल का अद्भुत ज्ञान

वराह अवतार की कथा एक और महत्वपूर्ण तथ्य की ओर इशारा करती है। भारत में उस समय भूगोल शब्द का प्रयोग होता था। भू का अर्थ है पृथ्वी और गोल का अर्थ है गोलाकार। इसका सीधा संकेत है कि भारत के ऋषि-मुनियों को हजारों वर्ष पहले ही पता था कि पृथ्वी गोल है। यह वैज्ञानिक सत्य आधुनिक विज्ञान ने बहुत बाद में स्वीकारा, लेकिन हमारे शास्त्रों और मंदिरों की मूर्तियों में पृथ्वी को गोलाकार रूप में चित्रित किया गया। दक्षिण भारत के प्राचीन मंदिरों में वराह देव की मूर्तियों में पृथ्वी को उनके दाँतों पर रखा हुआ दिखाया गया है और वह स्पष्ट रूप से गोल है।

वराह और हिरण्याक्ष का युद्ध

कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह रूप में पृथ्वी को उठाया तो हिरण्याक्ष ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ, जो हजारों वर्षों तक चला। अंततः भगवान विष्णु ने दैत्य का वध कर पृथ्वी को मुक्त किया। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में धर्म और सत्य की ही विजय होती है।

वराह अवतार का दार्शनिक महत्व

इस कथा का दार्शनिक अर्थ यह है कि जब जीवन पर संकट गहराई में जाकर जकड़ ले, तब उसे निकालने के लिए भीतर तक पहुँचने की क्षमता चाहिए। वराह अवतार यह संदेश देता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, धैर्य, पराक्रम और सही प्रयास से समाधान निकाला जा सकता है। इसके साथ ही यह अवतार हमें यह भी सिखाता है कि पृथ्वी केवल एक भौतिक वस्तु नहीं बल्कि माँ समान है, जिसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।

वराह जयंती का उत्सव

वराह जयंती हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भक्तजन व्रत, पूजा और पाठ करते हैं। वराह भगवान की पूजा करने से जीवन में आ रही कठिनाइयाँ दूर होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं और दक्षिण भारत में तो वराह देव की पूजा का प्रचलन बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है।

वराह अवतार और आधुनिक दृष्टिकोण

अगर इस कथा को आधुनिक दृष्टि से देखें तो यह ब्रह्मांड के रहस्यों और पृथ्वी की महत्ता को दर्शाती है। गर्भोदक सागर को आज का कॉस्मिक ओशन या ब्रह्मांडीय ऊर्जा का सागर कहा जा सकता है। पृथ्वी का जलमग्न होना उस स्थिति का प्रतीक है जब मानव जीवन कठिनाइयों और अज्ञानता में डूब जाता है। वराह अवतार यह संकेत है कि सही दिशा और शक्ति मिलते ही जीवन को अंधकार से बाहर निकाला जा सकता है।

जीवन का गहरा संदेश

भगवान विष्णु का वराह अवतार केवल पौराणिक कथा नहीं है बल्कि यह जीवन का गहरा संदेश है। यह हमें सिखाता है कि पृथ्वी की रक्षा करना, बुराई से संघर्ष करना और सच्चाई की जीत सुनिश्चित करना हर मनुष्य का कर्तव्य है। वराह जयंती के दिन इस कथा का स्मरण हमें यह प्रेरणा देता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों, हमें धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए।

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