महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले का अपना धार्मिक महत्व है। निस्संदेह यह आस्था का सबसे बड़ा जमावड़ा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग भाग लेते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं। लेकिन इन मेला में जो सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र होता है जिसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग और मीडिया जगत के लोग आते है वह होता है नागा साधु. इस साधु की विशेषता यह होती है कि इसे सम्मान देने के लिए आम भक्त के साथ साथ खास वर्ग भी ललायित रहता है.
नागा साधु कौन होते हैं और क्या करते हैं?
जब भी कोई व्यक्ति नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में जाता है, तो सबसे पहले उसके पूरे बैकग्राउंड के बारे पता किया जाता है. जब अखाड़ा पूरी तरह से आश्वस्त हो जाता है, तब शुरू होती है, उस शख्स की असली परीक्षा. अखाड़े में एंट्री के बाद नागा साधुओं के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है, जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म की दीक्षा दी जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में एक साल से लेकर 12 साल तक लग सकते हैं. अगर अखाड़ा यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है, फिर उसे अगली प्रक्रिया से गुजरना होता है. दूसरी प्रक्रिया में नागा अपना मुंडन कराकर पिंडदान करते हैं, इसके बाद उनकी जिंदगी अखाड़ों और समाज के लिए समर्पित हो जाती है. वो सांसारिक जीवन से पूरी तरह अलग हो जाते हैं. उनका अपने परिवार और रिश्तेदारों से कोई मतलब नहीं रहता. पिंडदान ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वो खुद को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मान लेता है और अपने ही हाथों से वो अपना श्राद्ध करता है. इसके बाद अखाड़े के गुरु नया नाम और नई पहचान देते हैं. नागा साधु बनने के बाद वो अपने शरीर पर भभूत की चादर चढ़ा देते हैं. ये भस्म भी बहुत लंबी प्रक्रिया के बाद बनती है. मुर्दे की राख को शुद्ध करके उसे शरीर पर मला जाता है या फिर हवन या धुनी की राख से शरीर ढका जाता है.
चिता की राख से भस्म की चादर
नागा साधु बनने के बाद वो अपने शरीर पर भभूत की चादर चढ़ा देते हैं. ये भस्म भी बहुत लंबी प्रक्रिया के बाद बनती है. मुर्दे की राख को शुद्ध करके उसे शरीर पर मला जाता है या फिर हवन या धुनी की राख से शरीर ढका जाता है.
नागा साधु का जीवन कैसे चलता है?
कोई भी संन्यासी अथवा नागा साधु हो, वह पूर्ण निर्धन हो ऐसा कम ही देखने को मिलता है, सन्यासी को अपना जीवन यापन भिक्षा मांग कर ही करना होता है, दान के पैसों का खुद पर उपयोग कभी नहीं कर सकते… नागा सन्यासी अपने मठ मंदिरों की रक्षा और संचालन का कार्य भी दान के पैसों से ही करते हैं… यदि भिक्षा में भोजन मिला तो कर लिया अथवा भूखे ही रह गए…..नागा संन्यासी एक स्थान पर कभी नहीं रुकते, वे भिक्षा मांगते हुए, उन के मठ या अखाड़ों पर आना जाना करते रहते हैं…… नागा संन्यासी एकांत स्थान में रहना पसंद करते हैं, विशेषकर नदियों के किनारे, जैसे मध्यप्रदेश में नर्मदा के किनारे, महाराष्ट्र में गोदावरी, गुजरात और राजस्थान के सुनसान स्थानों पर, और उत्तराखंड यूपी के जंगलों में नदियों की धाराओं के किनारे…… आप उनकी कुटिया को देख सकते हैं
नागा साधु रहते कहां है?
अर्धकुंभ, महाकुंभ में हुंकार भरते, शरीर पर भभूत लगाए नाचते-गाते नागा बाबाओं को अक्सर आपने देखा होगा. लेकिन कुंभ खत्म होते ही ये नागा बाबा न जाने किस रहस्यमयी दुनिया में चले जाते हैं, इसका किसी को नहीं पता. नागा साधु अपने जीवन को बहुत ही संवेदनशीलता और त्याग के साथ बिताते हैं। ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. नागा साधु बस्ती से दूर गुफाओं में साधना करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि नागा साधु एक ही गुफा में हमेशा नहीं रहते हैं, बल्कि वो अपनी जगह बदलते रहते हैं. कई नागा साधु जंगलों में ही घूमते-घूमते कई साल काट लेते हैं और वो बस कुंभ या अर्धकुंभ में नजर आते हैं.
नागा साधुओं को इतना खतरनाक क्यों बताया जाता है?
नागा साधु अपनी मस्ती में मस्त, अपने अखाड़ों में धुनि रमाये, जीवन के गुह्यतर सत्यों की खोज में डूबे लोग हैं। वो किसी से कुछ लेते नहीं, किसी के मामले में टांग नहीं अड़ाते, किसी के कार्य और जीवन में बाधा नहीं डालते, वो कब, कैसे क्यों और किसके लिए खतरनाक हैं? नागा साधु एक साधक हैं, उन्होने एक विशिष्ट जीवन पद्धति और आध्यात्मिक मार्ग पर चलना स्वीकार किया है, जिसकी अपनी हज़ारों वर्षों की परम्परा है। लोग उन्हें काशी, हरिद्वार, हिमालयन पर्वतों के करीब, दर्शन या कुम्भ मेलों के दौरान ही देख पाते हैं, उनकी अपनी दुनिया और संसार है.
हठ योगी होते है नागा साधु
कुंभ और महाकुंभ के दौरान हाड़ कंपाने वाली सर्दी में भी ये नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं, तो भरी गर्मी में भभूत लगाए हुए नजर आते हैं. नागाओं को न कोई आते हुए देखता है, न ही जाते हुए. नागा साधुओं की जिंदगी बेहद कठिन होती है. उनके तैयार होने की प्रक्रिया कई सालों तक चलती है, उसके बाद नागा साधु तैयार होते हैं.
क्या खाते हैं नागा साधु?
ऐसा कहा जाता है कि नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं. वो खाना भी भिक्षा मांगकर खाते हैं. इसके लिए उन्हें सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार होता है. अगर सातों घरों से कुछ न मिले, तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है.
