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June 19, 2025 1:17 am

छठ पूजा- एक ऐसा पर्व जिसमें व्रती ही पुजारी की भूमिका में होती है

छठ पूजा भारत का एक ऐसा विशेष पर्व है, जिसमें किसी पंडित, पुजारी या धर्म गुरु की जरूरत नहीं होती, बल्कि इसे व्रती स्वयं करते हैं। इस पर्व का प्रमुख आकर्षण यह है कि इसमें हर श्रद्धालु अपने आप में पंडित होता है और पूजा की सभी विधियाँ स्वयं ही निभाता है। इस अनोखे पर्व के पीछे कई सामाजिक और धार्मिक कारण जुड़े हुए हैं, जो इसे एक विशेष स्थान देते हैं।

धार्मिक कारण:

छठ पूजा सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। इस पूजा में सूर्य की उपासना करने का महत्व है, जो भारतीय संस्कृति में जीवनदायिनी और ऊर्जा का स्रोत माने जाते हैं। मान्यता है कि सूर्य देवता अपने भक्तों की हर कठिनाई दूर करते हैं और स्वास्थ्य, समृद्धि और शांति का वरदान देते हैं। इस पूजा में किसी मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह माना जाता है कि सूर्य देवता सीधे अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं। इसलिए व्रती स्वयं ही पवित्रता और श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं, और इसे एक व्यक्तिगत तथा आत्मिक अनुभव माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पूजा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कर्ण, जो कि सूर्य के पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे और उनकी कृपा से अपार शक्तियाँ प्राप्त की थी। इसके अलावा, द्रौपदी और पांडवों ने भी कठिन समय में छठी मैया की उपासना की थी, जिससे उनका संकट दूर हुआ। इस प्रकार यह एक ऐसा पर्व है जिसमें व्यक्तिगत पूजा का महत्व है और इसकी आत्मीयता के कारण इसे स्वयं व्रती ही संपन्न करते हैं।

समाज के हर वर्ग को एक करने का पर्व:

छठ पूजा सामाजिक समरसता और समानता का प्रतीक है। इसमें जाति, वर्ग, लिंग या धन-संपत्ति का कोई भेदभाव नहीं होता। सभी व्रती, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हों, समान रूप से नदी, तालाब या जलाशय के किनारे एकत्र होते हैं और सूरज को अर्घ्य देते हैं। यह परंपरा लोगों को एकता, सहयोग और सहनशीलता का पाठ सिखाती है। छठ पर्व पर किसी पुजारी या पंडित की आवश्यकता न होना इस बात को और भी बल देता है कि ईश्वर की पूजा में भेदभाव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

साथ ही, छठ पर्व में विभिन्न सामाजिक मूल्य भी सिखाए जाते हैं जैसे त्याग, सेवा और परोपकार। इस पर्व में महिलाएं और पुरुष समान रूप से संकल्प लेते हैं, कठिन व्रत करते हैं, और अपने परिवार और समाज के कल्याण की कामना करते हैं। व्रत में खासकर महिलाएं कठिन नियमों का पालन करती हैं और इसे अपने परिवार के सुख और समृद्धि के लिए करती हैं। इस प्रकार, यह पर्व महिलाओं की शक्ति, धैर्य और समर्पण को भी दर्शाता है।

पर्यावरण संरक्षण का संदेश:

छठ पूजा एक ऐसा पर्व भी है जो प्रकृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसमें पूजा के लिए प्रकृति से प्राप्त सामग्री का उपयोग होता है जैसे कि बांस की टोकरियाँ, गन्ना, नारियल, केला, और गेहूं का आटा। इस प्रकार यह पर्व न केवल लोगों को प्रकृति के करीब लाता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। जलाशयों में सामूहिक रूप से स्नान करना और स्वच्छता का ध्यान रखना भी इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है।

समाज को एकजुट करने का पर्व:

छठ पर्व भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि समाज को एकजुट करने, पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने और सभी को बराबरी का अहसास कराने में सहायक है। इसमें किसी पंडित की आवश्यकता न होने का कारण यह है कि छठ पूजा व्यक्ति की आत्मिक शक्ति, विश्वास और श्रद्धा का पर्व है, जिसमें हर श्रद्धालु अपने आप में पंडित होता है।

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