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03/10/2025 1:55 am

पूर्वजों की आत्मा की शांति कराए…परिवार को मिलता है आशिर्वाद

बिहार के गया में 17 सितंबर से पितृपक्ष मेले की शुरुआत हो जाएगी। विश्व प्रसिद्ध पितरों का महापर्व पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू होगा और दो अक्टूबर को समापन होगा। पितृपक्ष मेला में आने वाले तीर्थयात्रियों की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जिला प्रशासन तैयारियों में जुटे हैं। पहले दिन पिंडदानी पुनपुना वेदी पर श्राद्ध करेंगे। गया श्राद्ध का आरंभ 18 सितंबर से होगा। इस बार तिथि के क्षय होने से गया श्राद्ध 17 नहीं बल्कि 16 दिनों तक ही होगा। पूर्णिमा व प्रतिपदा का पिंडदान त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले पिंडदानी एक ही दिन करेंगे। हालांकि, 19 सितंबर के बाद से सभी वेदियों पर तिथि के मुताबिक ही कर्मकांड होंगे करेंगे।

पृतपक्ष का महत्व
पृतपक्ष (Pitru Paksha) एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक अवधि है जो विशेष रूप से अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाई जाती है। यह अवधि पितृ पक्ष या पित्र पक्ष के नाम से भी जानी जाती है और हिन्दू कैलेंडर के अश्वयुज मास की कृष्ण पक्ष (अमावस्या के दिन से लेकर 15 दिन तक) में होती है।

पृतपक्ष के महत्व और उद्देश्य:
पूर्वजों की आत्मा की शांति: पृतपक्ष के दौरान, लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा, तर्पण और दान करते हैं। यह मान्यता है कि इस समय पूर्वजों की आत्मा धरती पर आती है और उन्हें तर्पण देने से वे संतुष्ट होते हैं।

धार्मिक परंपराएँ और कृतज्ञता:
इस अवधि में लोग अपने परिवार के पूर्वजों की याद में पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके।

परिवार की खुशहाली:
मान्यता है कि अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने से परिवार की खुशहाली और समृद्धि में वृद्धि होती है। यह धार्मिक कृत्य परिवार के सदस्य को भी एकजुट और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।

कर्ज चुकाने का समय:
हिंदू धर्म में, यह माना जाता है कि हमारे पूर्वजों का ऋण हमारे ऊपर होता है। पृतपक्ष के दौरान इन ऋणों को चुकाने का प्रयास किया जाता है, जिससे व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

आध्यात्मिक सफाई:
इस अवधि में किए गए दान और पूजा से व्यक्ति की आत्मा को शांति और मन की सुकून मिलता है। यह समय आत्मिक सफाई और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है।

पृतपक्ष की परंपराएँ:
श्राद्ध और तर्पण: पृतपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण की विधि अपनाई जाती है। इसमें विशेष रूप से ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उनके माध्यम से पूर्वजों को तर्पण दिया जाता है।

दान और पूजा:
इस समय दान करने और धार्मिक कर्म करने की भी परंपरा है। गरीबों को भोजन और वस्त्र दान किए जाते हैं, और धार्मिक कर्मों में विशेष ध्यान दिया जाता है।

पृतपक्ष का समय व्यक्ति और परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जिससे वे अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट कर सकते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रयास कर सकते हैं।

 

 

 

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