भारत एक प्राचीन सभ्यता है, जहां नदियों को केवल जल स्रोत नहीं, बल्कि जीवनदायिनी शक्ति के रूप में देखा गया है। नदियों के प्रति आदर और पूजा की परंपरा भारत के सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसके पीछे कई गहरे कारण हैं:
1. सामाजिक कारण
नदियों ने भारतीय समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- जीविका का आधार: प्राचीन काल से नदियाँ कृषि, मत्स्य पालन और परिवहन के मुख्य स्रोत रही हैं। गंगा, यमुना, नर्मदा, और कावेरी जैसी नदियों के किनारे सभ्यताएँ फली-फूलीं।
- जल का संरक्षण: नदियों की पूजा का उद्देश्य समाज में जल के महत्व को समझाना और संरक्षण की भावना विकसित करना था।
- सामाजिक समरसता: नदियों के तटों पर मेलों और त्योहारों का आयोजन समाज में एकता और सामूहिकता का प्रतीक रहा है। कुंभ मेले जैसे आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक समागम के भी केंद्र हैं।
2. धार्मिक कारण
भारत में नदियों को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है।
- पवित्रता का प्रतीक: गंगा को मोक्षदायिनी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगा स्नान पापों का नाश करती है।
- धार्मिक ग्रंथों में स्थान: वेद, पुराण, और महाकाव्यों में नदियों का विशेष उल्लेख है। महाभारत और रामायण में नदियों के तटों पर अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं।
- त्योहार और अनुष्ठान: छठ पूजा, गंगा दशहरा और नर्मदा जयंती जैसे त्योहार नदियों की पूजा को समर्पित हैं। यह श्रद्धा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है।
3. आध्यात्मिक कारण
नदियों की पूजा का संबंध केवल बाह्य प्रकृति से नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना से भी है।
- जीवन और पुनर्जन्म: नदी का निरंतर प्रवाह जीवन चक्र और पुनर्जन्म का प्रतीक है।
- ध्यान और साधना: नदियों के तट पर ध्यान और साधना करना मानसिक शांति प्रदान करता है। ऋषि-मुनियों ने नदियों के किनारे आश्रम स्थापित किए, जहाँ अध्यात्म का प्रचार-प्रसार हुआ।
- प्राकृतिक सौंदर्य और प्रेरणा: नदियों का शांत प्रवाह और सुंदरता मानव मन को आंतरिक शुद्धि और प्रेरणा प्रदान करता है।
