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June 19, 2025 1:06 am

भारत में कहां है शकुनि का मंदिर?….क्यों भगवान शिव शकुनि की तपस्या से खुश हुए?

महाभारत के कौरव-पांडव युद्ध का प्रमुख पात्र शकुनी, अपने चतुराई भरे षड्यंत्रों और नीति-कुशलता के लिए जाना जाता है। वह गांधार (आज का अफगानिस्तान) के राजा और दुर्योधन के मामा थे। महाभारत युद्ध के बाद, जब कुरु वंश का विनाश हो गया और शकुनी के परिवार के सदस्य भी मारे गए, तो वह गहरे पश्चाताप में डूब गया। ऐसा कहा जाता है कि अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए, शकुनी ने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।

शकुनि की तपस्या और वरदान की कथा

महाभारत युद्ध में कौरवों की हार और कुल का विनाश देखकर शकुनि को अपने किए पर पछतावा हुआ। उनके मन में यह सवाल उत्पन्न हुआ कि उनकी कुटिल चालों ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे समाज को भी बड़े संकट में डाल दिया। पश्चाताप की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने भगवान शिव की आराधना करने का निर्णय लिया।

शकुनि ने कठोर तपस्या की, और अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। शिव प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। शकुनि ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उन्हें पुनर्जन्म में एक ऐसा जीवन दिया जाए, जिसमें वे अधर्म के बजाय धर्म का पालन कर सकें। यह कथा प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाती है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों का पश्चाताप करके मोक्ष या सुधार का मार्ग चुन सकता है।

शकुनि का मंदिर: केरल के मलप्पुरम में कल्लियोट्टु कावु मंदिर

केरल के मलप्पुरम जिले में स्थित कल्लियोट्टु कावु मंदिर को शकुनि मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह भारत में शकुनि को समर्पित इकलौता मंदिर है। इस मंदिर में शकुनि की पूजा की जाती है, जो एक अनोखी परंपरा है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है, जहां शकुनि ने अपने बुरे कर्मों का पश्चाताप किया था।

मंदिर में उनकी पूजा मुख्य रूप से कुटिलता और अधर्म से मुक्ति के प्रतीक के रूप में की जाती है। यहां के लोग मानते हैं कि यह मंदिर दुष्ट प्रवृत्तियों से मुक्ति पाने और बुद्धिमत्ता में वृद्धि के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

मंदिर की विशेषता और प्रसिद्धि

मंदिर में सालाना एक विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसे “कलियोट्टु” कहा जाता है। इस दौरान ग्रामीण लोक नृत्य और अनुष्ठान के माध्यम से महाभारत की कहानियों को जीवंत करते हैं। यह मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है कि यह धर्म और अधर्म की गहरी दार्शनिक समझ को दर्शाता है।

मंदिर तक कैसे पहुंचे?

कल्लियोट्टु कावु मंदिर, केरल के मलप्पुरम जिले में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए:

  1. हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा कालीकट इंटरनेशनल एयरपोर्ट (करीपुर) है, जो मंदिर से लगभग 30 किमी दूर है।
  2. रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन तिरूर रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 25 किमी की दूरी पर है।
  3. सड़क मार्ग: मलप्पुरम से नियमित बस और टैक्सी सेवाएं मंदिर तक आसानी से उपलब्ध हैं।

जब जागो तभी सबेरा

शकुनि की कथा और उनके मंदिर की परंपरा हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न किए हों, पश्चाताप और सुधार का मार्ग हमेशा खुला रहता है। भगवान शिव, जो करुणा और क्षमा के प्रतीक हैं, इस कथा में यह संदेश देते हैं कि सही दिशा में प्रयत्न करने पर जीवन में बदलाव संभव है। कल्लियोट्टु कावु मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक गहरा दार्शनिक संदेश भी प्रस्तुत करता है।

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