बिहार के बक्सर में पंचकोशी मेला में लिट्टी बनाने और खाने की परंपरा गहराई से जुड़ी हुई है। यह परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक कारणों से विकसित हुई है। लिट्टी-चोखा बिहार के पारंपरिक व्यंजनों में से एक है और इसे विशेष अवसरों, मेलों और धार्मिक आयोजनों में विशेष रूप से तैयार किया जाता है।
लिट्टी का पंचकोशी मेले से संबंध
- सात्त्विक भोजन का महत्व:
पंचकोशी मेले में आने वाले श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठान और परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सात्त्विक और शुद्ध भोजन का सेवन किया जाता है। लिट्टी, जो जौ और गेहूं के आटे से बनती है और सत्तू से भरी होती है, सात्त्विक और पचने में हल्की होती है। इसे शुद्ध घी के साथ परोसा जाता है, जिससे यह धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में उपयुक्त भोजन बनता है। - आसानी से बनने वाला भोजन:
लिट्टी को बनाने में न तो बहुत अधिक सामग्री की आवश्यकता होती है और न ही यह जटिल प्रक्रिया है। मिट्टी के चूल्हे पर या खुले आग में इसे आसानी से पकाया जा सकता है। पंचकोशी परिक्रमा के दौरान, जहां सादगी और सहजता का महत्व है, लिट्टी आदर्श भोजन है। - ऊर्जा और पोषण का स्रोत:
परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु लंबी दूरी तय करते हैं, जिससे शरीर को ऊर्जा और पोषण की आवश्यकता होती है। लिट्टी सत्तू से भरी होती है, जो प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत है। यह शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है और भूख को लंबे समय तक शांत रखता है। - सांस्कृतिक पहचान:
लिट्टी-चोखा बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। पंचकोशी मेला, जहां बिहार के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं, वहां लिट्टी बनाना और खाना अपनी परंपरा और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। - सामूहिकता और मेलजोल:
मेले में लिट्टी बनाना और बांटना सामूहिकता और सहयोग का प्रतीक है। श्रद्धालु अक्सर सामूहिक रूप से लिट्टी तैयार करते हैं और खाते हैं, जिससे आपसी प्रेम और एकता बढ़ती है। - स्थानीय उत्पादों का उपयोग:
बक्सर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में गेहूं, जौ और चना का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है। लिट्टी इन स्थानीय उत्पादों का उपयोग करके बनाई जाती है, जिससे यह न केवल सस्ता और सुलभ भोजन है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी समर्थन देता है।
लिट्टी की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता
लिट्टी का निर्माण प्रक्रिया और इसका स्वाद इसे मेले का अनिवार्य हिस्सा बनाते हैं। इसे घी के साथ परोसने की परंपरा न केवल इसका स्वाद बढ़ाती है, बल्कि इसे धार्मिक दृष्टि से भी शुभ बनाती है। घी को पवित्र माना जाता है, और इसका उपयोग भगवान को अर्पित प्रसाद में भी किया जाता है।
भोजन नहीं परंपरा है
पंचकोशी मेला में लिट्टी का बनाया जाना सिर्फ एक खानपान की परंपरा नहीं है, बल्कि यह बक्सर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह सादगी, पोषण, सामूहिकता और स्थानीयता का मेल है। श्रद्धालु इसे भोजन के रूप में नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था के प्रतीक के रूप में स्वीकार करते हैं, जो मेले के अनुभव को और भी खास बनाता है।
