Explore

Search

03/10/2025 12:08 am

क्या गेहूं का आटा हमारे तोंद को बढ़ाता है?

Wheat Belly” किताब, जो डॉ. विलियम डेविस द्वारा लिखी गई है, मुख्य रूप से यह दावा करती है कि आधुनिक गेहूं का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। डॉ विलियम डेविस अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं …उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था “Wheat belly यानि गेंहू की तोंद”…यह पुस्तक फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक है…इस किताब के जरिए पूरे अमेरिका में गेंहू को त्यागने का अभियान चलाया जा रहा है. हो सकता है कि आने वाले समय में यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आ जाए.

क्या मोटापे का कारण गेहूं हैं?
इस किताब में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि….जिसमें डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह ज्वार ,बाजरा, रागी, चना, मटर, कोदरा, जो, सावां, कांगनी ही खाना चाहिये गेंहू को त्याग देना चाहिए……जबकि भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह- शाम गेंहू खा-खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं…


भारत में मौसम के अनुसार रोटी बनती थी
इस किताब का दावा है कि गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है. यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांताओ के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था…उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि…भारतीयों के मांगलिक कार्यों में भी जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढाए जाते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है…

आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट
हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लम्बी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं। वे सब मोटा अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं। एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी, आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं…फ़िर भी 30 साल पार का हर दूसरा भारतीय अपनी तौंद घटाना चाहता है और इसी में लगा है लेकिन रिजल्ट कुछ नहीं.

क्या हमें गेहूं त्यागना होगा?
गेंहू की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाये हुये है, क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से बन जाती है…पर यह अनाज उतनी आसानी से पचता नहीं है…समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे, रागी ,मटर, चना, रामदाना आदि को रखना चाहिये और 10-20 प्रतिशत गेंहू को… हाल ही कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में समाप्त कर दिया उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के करीब है…वाकई गेहूं त्यागना ही पड़ेगा…

गेहूं की जगह मल्टीग्रेन आटा का यूज कीजिए
रोटी हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का मुख्य स्रोत है. अनेकानेक व्यंजन खा लेने के बाद भी हमें संतुष्टि केवल रोटी खाने पर ही होती है. लगभग हर अनाज कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत होता है. आमतौर पर भारतीय घरों में रोटी बनाने के लिए गेहूं, बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे अनाज का प्रयोग किया जाता है. अधिकांश घरों में मूलत: गेहूं की सादी रोटियां ही बनाई जाती हैं, परंतु गेहूं की रोटी स्वादिष्ठ अधिक, पौष्टिक कम होती है. इसलिए गेहूं में यदि अन्य अनाज को मिला कर आटा पिसवाया जाए तो ऐसे आटे से बनी रोटी की पौष्टिकता बढ़ जाती है. इस प्रकार के आटे को मल्टीग्रेन आटा या कौंबिनेशन फ्लोर कहा जाता है. मल्टीगे्रन आटे से बनी रोटी विभिन्न प्रकार के रोगों में भी लाभदायक होती है.

Leave a Comment