अधिकांश हिंदू परंपराओं में उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है क्योंकि इसे जीवन, नई शुरुआत, शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है जिसमें डूबते और उगते, दोनों सूर्यों की पूजा की जाती है। इस अनुष्ठान के पीछे धार्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण गहरे जुड़े हुए हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
धार्मिक कारण
छठ पूजा मुख्यतः सूर्य देव और उनकी बहन छठी मईया की उपासना का पर्व है। सूर्य देव को संपूर्ण सृष्टि का जीवनदाता माना जाता है, और उनके प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। डूबते सूर्य की पूजा का अर्थ है जीवन के उतार-चढ़ाव और विभिन्न चरणों का सम्मान करना। ऐसा माना जाता है कि डूबते सूर्य की पूजा के माध्यम से भक्त जीवन के संघर्षों, कष्टों और विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार करते हैं। उगते सूर्य की पूजा नए सिरे से जीवन को अपनाने और सकारात्मकता का प्रतीक है, वहीं डूबते सूर्य की पूजा के माध्यम से यह मान्यता है कि जीवन का हर पक्ष, चाहे वह सुख हो या दुःख, आदर और सहनशीलता से स्वीकार करना चाहिए।
इसके अलावा, पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य देवता को संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए पूजा जाता है। डूबते सूर्य की पूजा के पीछे यह भी मान्यता है कि सूर्य देव दिन भर के बाद विश्राम की स्थिति में होते हैं, और इस समय की गई पूजा से वे आसानी से प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। छठ पूजा में डूबते सूर्य की पूजा करना भी इस मान्यता का हिस्सा है कि जीवन में संतुलन और धैर्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
सामाजिक कारण
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी है। यह पर्व सामूहिकता, सद्भावना, और सहयोग का प्रतीक है। सूर्य देवता सभी के लिए समान हैं—चाहे वह अमीर हो या गरीब, स्त्री हो या पुरुष। इसी प्रकार, छठ पूजा में डूबते सूर्य की पूजा यह सिखाती है कि समाज में सभी लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए, चाहे वे किसी भी परिस्थिति में हों। डूबते सूर्य की पूजा समाज में यह संदेश भी फैलाती है कि हर इंसान का सम्मान केवल उसके उत्थान के समय में ही नहीं, बल्कि उसके संघर्ष और कठिन समय में भी किया जाना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक कारण
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो डूबते सूर्य की पूजा का गहरा महत्व है। डूबता हुआ सूर्य हमें यह सिखाता है कि जीवन में सफलता और असफलता, उतार-चढ़ाव, दोनों ही जरूरी हैं। डूबते सूर्य की पूजा जीवन के उस पहलू को अपनाने का प्रतीक है, जिसमें हम अपने अंत को समझते हैं और जीवन की अनिश्चितताओं को स्वीकार करते हैं। यह पूजा हमें धैर्य, सहनशीलता और सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्व का अहसास कराती है। इसके साथ ही, डूबते सूर्य को प्रणाम करने का अर्थ यह भी है कि हम अपने बीते समय का आदर करें और उससे मिली सीख को अपनाएं। इससे मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है और हम आने वाले कल के लिए तैयार रहते हैं।
छठ पूजा में उगते और डूबते सूर्य दोनों की पूजा यह संदेश देती है कि जीवन का हर पक्ष महत्वपूर्ण है और जीवन में संतुलन बनाना आवश्यक है। डूबते सूर्य की पूजा हमें यह सिखाती है कि असफलताओं को भी स्वीकार करें और उनसे सबक लें। उगते सूर्य की पूजा जहां आशा और नई शुरुआत का प्रतीक है, वहीं डूबते सूर्य की पूजा जीवन की वास्तविकता को समझने और उसे अपनाने की प्रेरणा देती है। इस तरह, छठ पूजा में डूबते सूर्य की पूजा का धार्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्व हमारे जीवन को संतुलित, सामूहिक और सकारात्मक दृष्टिकोण से जीने की प्रेरणा देता है।
