Explore

Search

June 20, 2025 12:40 am

पौष पुत्रदा एकादशी-इस व्रत को रखने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं

पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। यह व्रत हर साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संतान प्राप्ति की कामना और संतान की सुख-समृद्धि के लिए भगवान विष्णु की आराधना करना है। इसे विशेष रूप से उन दंपतियों द्वारा रखा जाता है, जो संतान सुख की प्राप्ति के इच्छुक होते हैं।

धार्मिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय भद्रावती नगरी में राजा सुकेतुमान और रानी शैव्या रहते थे, जिनके कोई संतान नहीं थी। संतानहीन होने के कारण वे दोनों अत्यंत दुखी रहते थे। एक दिन राजा जंगल में गए और वहां उन्होंने ऋषियों से इस एकादशी व्रत के बारे में जाना। उन्होंने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से किया। इसके फलस्वरूप उन्हें एक योग्य और धर्मपरायण पुत्र की प्राप्ति हुई।

व्रत विधि

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने के लिए व्यक्ति को एक दिन पूर्व से ही सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा में तुलसी दल, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं। दिनभर भगवान विष्णु के नाम का जाप और उनकी लीलाओं का स्मरण करें।
रात्रि को जागरण करके भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।

आध्यात्मिक लाभ

पौष पुत्रदा एकादशी केवल संतान प्राप्ति की कामना के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह व्रत आत्मसंयम और भक्ति का प्रतीक है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

एकादशी व्रत का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी दृष्टिकोण से भी है। व्रत करने से शरीर का शुद्धिकरण होता है, पाचन तंत्र को आराम मिलता है, और मानसिक शांति की अनुभूति होती है। इसके साथ ही, संयम और ध्यान से व्यक्ति के मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

समाज में इसका प्रभाव

पौष पुत्रदा एकादशी परिवार और समाज में सकारात्मकता और एकता का संदेश देती है। यह व्रत संतान की जिम्मेदारी और उनके प्रति माता-पिता के कर्तव्यों की याद दिलाता है। साथ ही, यह जीवन में अनुशासन और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है।

Leave a Comment