आज के दौर में बच्चों में मोटापा, मधुमेह और अन्य मेटाबॉलिक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं, जिनका एक बड़ा कारण अत्यधिक चीनी (शुगर) का सेवन है। ऐसे में चंडीगढ़ प्रशासन ने स्कूलों में शुगर युक्त खाद्य और पेय पदार्थों के सेवन को नियंत्रित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह पहल न सिर्फ बच्चों की वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति में सुधार लाएगी, बल्कि दीर्घकालिक स्वास्थ्य को भी सुरक्षित बनाएगी। यह लेख इस प्रयास की गहराई, कारण, प्रभाव और भविष्य की दिशा पर प्रकाश डालता है।
चंडीगढ़ की पहल: क्या है योजना?
चंडीगढ़ प्रशासन ने सभी स्कूलों में बच्चों को शुगर से युक्त खाद्य पदार्थों जैसे कोल्ड ड्रिंक, पैकेज्ड जूस, कैंडी, चॉकलेट, मिठाइयाँ और प्रोसेस्ड स्नैक्स से दूर रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। स्कूलों की कैंटीन में ऐसे उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और स्वस्थ विकल्प प्रदान करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
- स्कूल कैंटीन में कोल्ड ड्रिंक्स, मिठाइयाँ, पैकेज्ड बिस्कुट, नमकीन, फ्राइड स्नैक्स की बिक्री बंद।
- इनकी जगह फलों, छाछ, नींबू पानी, स्प्राउट्स, साबुत अनाज स्नैक्स आदि को प्रोत्साहित किया गया।
- बच्चों और अभिभावकों को जागरूक करने के लिए हेल्थ वर्कशॉप्स और पोस्टर कैंपेन शुरू किए गए।
यह पहल क्यों है जरूरी?
- बढ़ता मोटापा और डायबिटीज़ का खतरा: भारत में बच्चों में मोटापा और किशोरावस्था में टाइप-2 डायबिटीज़ तेजी से बढ़ रहा है। WHO के अनुसार, अत्यधिक शुगर सेवन इन बीमारियों का प्रमुख कारण है।
- खाली कैलोरी का सेवन: कोल्ड ड्रिंक्स और पैकेज्ड जूस जैसे उत्पाद केवल खाली कैलोरी देते हैं, जिनमें पोषण नहीं होता। इससे बच्चे पेट तो भर लेते हैं लेकिन आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- आदतों का बनना: जो बच्चे बचपन से ही मीठा ज़्यादा खाते हैं, उनमें यह आदत आगे चलकर स्वास्थ्य जोखिमों को जन्म देती है। ऐसे में शुरुआत से ही सही दिशा में मार्गदर्शन ज़रूरी है।
संभावित लाभ:
- बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार।
- दांतों की सड़न और मोटापा कम होने की संभावना।
- स्कूल में ऊर्जा और एकाग्रता का स्तर बेहतर होना।
- लंबे समय में हृदय रोगों और मधुमेह का खतरा कम।
माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका:
इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्कूलों के साथ-साथ अभिभावकों की भूमिका भी अहम है। घर में बच्चों को फ्रूट बेस्ड मिठाइयाँ, घर का बना हलवा, गुड़-चने जैसी पारंपरिक और हेल्दी चीजें दें। शिक्षकों को कक्षा में बच्चों को स्वस्थ खानपान के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
इस पहल को कैसे और मजबूत बनाया जा सकता है?
- नियमित हेल्थ चेकअप और डाइट काउंसलिंग सत्र।
- स्कूल स्तर पर हेल्दी रेसिपी प्रतियोगिता और अवेयरनेस ड्राइव।
- शुगर सेवन पर ट्रैकिंग एप्स और पुरस्कार प्रणाली।
- मीडिया और सोशल मीडिया पर इस अभियान को लोकप्रिय बनाना।
WHO और FSSAI का दृष्टिकोण:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) भी बच्चों में चीनी के सेवन को सीमित करने के पक्ष में हैं। FSSAI के अनुसार, बच्चों को रोजाना 5-6 चम्मच से अधिक शुगर नहीं देनी चाहिए, लेकिन एक कोल्ड ड्रिंक में ही 8-10 चम्मच चीनी होती है। ऐसे में यह पहल अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों के अनुरूप है।
दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण:
चंडीगढ़ की यह पहल एक मॉडल बन सकती है, जिसे देश के अन्य राज्य भी अपनाएं। यदि हर राज्य के स्कूलों में ऐसी जागरूकता फैले, तो आने वाले वर्षों में बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन देखा जा सकता है।
निष्कर्ष:
चंडीगढ़ द्वारा उठाया गया यह कदम एक छोटे से प्रयास जैसा लग सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम अत्यंत सकारात्मक हो सकते हैं। यह पहल न केवल बच्चों की सेहत को बचाने में मदद करेगी, बल्कि उन्हें एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की दिशा में प्रेरित भी करेगी। स्कूलों में शुगर सेवन पर रोक और स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देना हमारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव है।
