हजारों वर्षों से भारतीय समाज की रीढ़ माने जाने वाले संयुक्त परिवार और विवाह संस्था आज आधुनिकता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवनशैली में बदलाव की वजह से टूटते नजर आ रहे हैं। तेजी से बदलती सोच, तकनीक, और सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन के चलते आज विवाह के प्रति विश्वास डगमगाने लगा है।
भारतीय पारिवारिक ढांचे का बदलता चेहरा:
- संयुक्त से एकल परिवार की ओर झुकाव
- पहले जहां तीन-चार पीढ़ियां एक छत के नीचे रहती थीं, अब हर कोई अपनी निजी जगह और स्वतंत्रता चाहता है।
- शादी की उम्र में बदलाव
- पहले की अपेक्षा अब शादी की उम्र बढ़ गई है, साथ ही कई युवा विवाह से दूरी बनाना पसंद कर रहे हैं।
- शादी के प्रति उदासीनता
- कई युवाओं का मानना है कि शादी व्यक्तिगत आज़ादी में बाधा डालती है।
- आर्थिक स्वतंत्रता और असहिष्णुता
- महिलाएं अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। लेकिन इसके साथ ही सहनशीलता में भी गिरावट आई है।
- सोशल मीडिया और जीवनशैली का प्रभाव
- इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स ने जीवन की अपेक्षाओं को अवास्तविक बना दिया है।
विवाह संस्था में विश्वास की कमी के प्रमुख कारण:
1. कम होता संवाद
- आज के समय में जीवनसाथियों के बीच संचार की कमी एक बड़ी समस्या है।
2. करियर प्राथमिकता बन गया है
- युवा करियर को पहली प्राथमिकता मानते हैं, जिससे शादी और परिवार को समय नहीं दे पाते।
3. बढ़ते तलाक के मामले
- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले एक दशक में तलाक के मामलों में 40% की बढ़ोतरी हुई है।
4. पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव
- लिव-इन रिलेशन, स्वतंत्र जीवनशैली को अधिक महत्व मिलने लगा है।
5. दबाव और अपेक्षाओं का बोझ
- शादी को आज भी कई परिवार एक सामाजिक दबाव के रूप में थोपते हैं, जिससे रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं।
सामाजिक परिणाम:
- बुजुर्गों की उपेक्षा
- संयुक्त परिवार के टूटने से बुजुर्ग अकेले और असहाय होते जा रहे हैं।
- बच्चों पर प्रभाव
- माता-पिता के अलग होने का सीधा असर बच्चों के मानसिक विकास पर पड़ता है।
- मूल्य और परंपराओं में गिरावट
- पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा अब कमजोर हो रही है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर असर
- रिश्तों में स्थायित्व की कमी से युवाओं में डिप्रेशन, एंग्जायटी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
विशेषज्ञों की राय:
1. डॉ. शैलजा वर्मा (समाजशास्त्री)
“परिवार का ताना-बाना केवल खून के रिश्तों से नहीं बल्कि विश्वास, संवाद और सहिष्णुता से जुड़ा होता है, जो आज की पीढ़ी में कम होता जा रहा है।”
2. डॉ. रवि शंकर (मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ)
“शादी टूटने की घटनाएं बढ़ने से युवाओं में अकेलापन, असुरक्षा और अवसाद जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।”
3. डॉ. सुरभि अग्रवाल (काउंसलर)
“आज के युवा आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से कमज़ोर हो गए हैं। रिश्तों को निभाने की आदत नहीं रह गई।”
समाधान और सुझाव:
1. संवाद को बढ़ावा दें
- जीवनसाथियों के बीच नियमित बातचीत और पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण है।
2. काउंसलिंग को अपनाएं
- शादी पूर्व और विवाहोत्तर काउंसलिंग रिश्तों को बचाने में मददगार हो सकती है।
3. पारिवारिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करें
- बच्चों को शुरुआत से ही संयुक्त परिवार और आपसी सहयोग के संस्कार देना आवश्यक है।
4. मीडिया और सोशल नेटवर्क से दूरी
- आभासी दुनिया की तुलना से बचें और यथार्थ जीवन के रिश्तों को प्राथमिकता दें।
5. संयुक्त परिवार की वापसी
- संभव हो तो बड़े परिवार में रहना अपनाएं जिससे सहयोग, सुरक्षा और संस्कार बने रहें।
निष्कर्ष:
भारतीय समाज की सबसे मजबूत इकाई — परिवार — आज एक संक्रमणकाल से गुजर रहा है। यदि समय रहते हमने अपने पारंपरिक मूल्यों को नहीं अपनाया, तो आगे चलकर हमें सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। शादी केवल एक सामाजिक रस्म नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी, विश्वास और साझेदारी की नींव है, जिसे मजबूत बनाए रखना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
