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02/10/2025 8:32 pm

आज की आवश्यकता: मोटा अनाज निरोगी रखने का उपाय

मानव जीवन का आधार भोजन है और भोजन में भी अनाज का महत्व सबसे अधिक है। एक समय था जब हमारे पूर्वज मोटा अनाज जैसे सांवा, कोदो, ज्वार, मड़ुआ, जौ, जई, मकुनी और बाजरा का सेवन करते थे। उस समय के लोग निरोगी रहते थे और लंबी आयु पाते थे। आज जब हम आधुनिक जीवनशैली और हाईब्रिड अनाज पर निर्भर हो गए हैं, तो न केवल हमारी सेहत बिगड़ी है बल्कि नई-नई बीमारियाँ भी हमें जकड़ने लगी हैं। यही कारण है कि अब धीरे-धीरे लोग फिर से मोटे अनाज और जैविक भोजन की ओर लौट रहे हैं।

मोटा अनाज: परंपरा और प्रकृति का आहार

गाँवों में बुजुर्ग कहते थे – “मोटा मेही खाओ, डॉक्टर दूर भगाओ।” यह कहावत सिर्फ मजाक नहीं बल्कि सच्चाई थी। क्योंकि मोटा अनाज शरीर को ताकत देता था, पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता था और रोगों से दूर करता था। पहले जब बारिश के मौसम में हरे चारे जैसे बरसीम, बाजरा और ज्वार खत्म हो जाते थे, तब सांवा ज्वार बोया जाता था। यह पशुओं के लिए चारे का काम करता था और जब इसमें बालियाँ आती थीं तो पक्षियों के लिए भोजन भी तैयार हो जाता था। माँ घर के लिए कुछ बीज बचाकर रखती थी और जब अतिरिक्त हो जाता था तो उसका चावल बनाकर दूध में भिगोकर खाया जाता था। यह भोजन स्वादिष्ट होने के साथ सेहतमंद भी था।

कोदो और मड़ुआ का महत्व

गाँवों में आज भी बुजुर्ग महिलाएँ बताती हैं कि कोदो की दो किस्में होती थीं। एक अच्छी और स्वास्थ्यवर्धक होती थी जबकि दूसरी में नशा करने की प्रवृत्ति पाई जाती थी। वहीं मड़ुआ जिसे आज रागी कहा जाता है, उसका उपयोग ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में खूब होता था। मड़ुआ की रोटी, झंगोरा, और राली रोटी इसके लोकप्रिय रूप थे। पहाड़ों में मड़ुआ की रोटी उतनी ही प्रिय है जितनी पंजाब में मक्की की रोटी और हरियाणा में बाजरे की रोटी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी लोग इन अनाजों का सेवन करते थे। बचपन की यादों में मड़ुआ की लापसी का स्वाद आज भी लोगों को याद है जो पौष्टिक और स्वादिष्ट दोनों होती थी।

आधुनिक अनाज और बीमारियों का फैलाव

जैसे-जैसे हमारी खानपान की आदतें बदलीं, वैसे-वैसे बीमारियाँ भी बढ़ीं। पहले लोग सौ साल तक स्वस्थ रहते थे लेकिन आज हार्ट अटैक, डायबिटीज, कैंसर और ब्रेन हैमरेज जैसी गंभीर बीमारियाँ अकाल मृत्यु का कारण बन रही हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि हमने मोटा अनाज और प्राकृतिक आहार छोड़कर परिष्कृत और हाईब्रिड अनाज को अपनाया। जो लोग पहले जौ खाने से कतराते थे, वही आज ओट्स खाकर खुद को आधुनिक समझते हैं। मड़ुआ के काले रंग से भागने वाले लोग अब रागी को फैशनेबल सुपरफूड मानकर खाते हैं। यानी अनाज वही है, बस उसका नाम और पैकेजिंग बदल गई है।

मोटे अनाज का पोषण और स्वास्थ्य लाभ

मोटे अनाज कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और फाइबर से भरपूर होते हैं। इनका सेवन करने से पाचन क्रिया सुधरती है और पेट से जुड़ी समस्याएँ दूर होती हैं। मोटा अनाज ग्लूटेन-फ्री होता है, इसलिए यह सीलिएक रोग और ग्लूटेन संवेदनशीलता वाले लोगों के लिए भी लाभकारी है। बाजरा और ज्वार जैसे अनाज हृदय रोगों से बचाते हैं, मड़ुआ हड्डियों को मजबूत करता है, कोदो और सांवा शुगर को नियंत्रित रखते हैं, वहीं जौ और जई शरीर को ठंडक और ताकत देते हैं।

गाँव से शहर तक मोटे अनाज की वापसी

आज जब लोग अपनी बिगड़ती सेहत और बढ़ती बीमारियों से परेशान हो गए हैं, तो वे फिर से मोटे अनाज की ओर लौट रहे हैं। शहरों में भी अब बाजरे की रोटी, ज्वार की खिचड़ी और रागी का आटा डिमांड में है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी यही सलाह दे रहे हैं कि refined food छोड़कर coarse grains यानी मोटे अनाज अपनाइए। यही कारण है कि आज सुपरमार्केट से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक मोटे अनाज की खूब बिक्री हो रही है।

निष्कर्ष

हमारे पूर्वजों की खानपान परंपरा में छिपा है निरोगी जीवन का रहस्य। अगर हम फिर से मोटे अनाज को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बना लें तो न केवल बीमारियों से बच सकते हैं बल्कि लंबी और स्वस्थ जिंदगी भी जी सकते हैं। यह सिर्फ ग्रामीण जीवन की याद नहीं बल्कि आधुनिक जीवनशैली के लिए भी जरूरी है। आज की आवश्यकता यही है कि हम मोटे अनाज को अपनाएँ और अपने जीवन को स्वस्थ और संतुलित बनाएँ।

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