नींद हमारे जीवन का वह अहम हिस्सा है जिसके बिना न तो शरीर सही तरीके से काम कर सकता है और न ही दिमाग। अच्छी नींद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है, याददाश्त और एकाग्रता को बेहतर करती है और मानसिक शांति प्रदान करती है। लेकिन यह बात हर किसी के लिए समान नहीं होती। नवजात शिशु को जहां दिनभर सोने की ज़रूरत होती है, वहीं युवा और वयस्क लोगों के लिए 7 से 9 घंटे की नींद पर्याप्त मानी जाती है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर की ऊर्जा की खपत और दिमाग की सक्रियता बदलती है, और उसी के अनुसार नींद की आवश्यकता भी बदल जाती है।
नवजात शिशु और शिशु अवस्था में नींद की ज़रूरत
नवजात शिशु यानी 0 से 3 महीने के बच्चों को सबसे अधिक नींद की आवश्यकता होती है। इस उम्र में शिशु तेजी से मानसिक और शारीरिक विकास से गुजरता है। दिमाग का निर्माण, मांसपेशियों का विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण इसी समय पर होता है। इसलिए इन्हें दिनभर में 14 से 17 घंटे तक की नींद जरूरी होती है। 4 से 7 महीने की उम्र में शिशु अधिक समय तक जागने लगता है, लेकिन फिर भी उसे 12 से 15 घंटे नींद चाहिए होती है। इस अवधि में नींद के पैटर्न बदलने लगते हैं, जिसे अक्सर “फोर मंथ रिग्रेशन” कहा जाता है।
टॉडलर्स और प्रीस्कूलर्स के लिए नींद का महत्व
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसकी नींद की अवधि कम होने लगती है। 1 से 2 साल की उम्र के टॉडलर्स को लगभग 11 से 14 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। इस समय पर बच्चे दिन में कम और रात में ज्यादा सोने लगते हैं। वहीं 3 से 5 साल की उम्र के प्रीस्कूलर बच्चों के लिए 10 से 13 घंटे की नींद आदर्श मानी जाती है। इस उम्र में ज्यादातर बच्चे दिन की नींद छोड़ देते हैं और रात की नींद पर निर्भर हो जाते हैं।
स्कूली बच्चों और किशोरों के लिए नींद की गाइड
6 से 13 साल की उम्र में बच्चों पर पढ़ाई, होमवर्क और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का असर अधिक होने लगता है। इस वजह से नींद का पैटर्न बिगड़ सकता है। इस उम्र में बच्चों को 9 से 11 घंटे नींद लेना जरूरी है ताकि उनकी ग्रोथ, एकाग्रता और स्मरणशक्ति सही बनी रहे। 14 से 17 साल के किशोरों को 8 से 10 घंटे की नींद आवश्यक है। हालांकि इस उम्र में बच्चे देर रात तक जागने और सुबह देर से उठने की आदत डाल लेते हैं, जो उनकी जैविक घड़ी और सेहत पर नकारात्मक असर डाल सकती है।
युवाओं और वयस्कों के लिए नींद की अवधि
18 से 25 साल के युवा और 26 से 64 साल के वयस्कों के लिए नींद की सीमा 7 से 9 घंटे है। इस समय पर जीवन की भागदौड़, नौकरी और जिम्मेदारियों के कारण नींद पर सबसे अधिक असर पड़ता है। कम नींद से तनाव, डिप्रेशन, मोटापा और हार्ट प्रॉब्लम्स जैसी बीमारियाँ बढ़ सकती हैं। इसलिए इस आयु वर्ग के लोगों को सोने और उठने का निश्चित समय तय करना चाहिए ताकि उनकी नींद का पैटर्न संतुलित रहे।
बुजुर्गों के लिए नींद की सच्चाई
65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में नींद की समस्या आम है। बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि उन्हें नींद जल्दी नहीं आती या बार-बार खुल जाती है। इसका कारण यह है कि उम्र बढ़ने के साथ दिमाग में नींद को नियंत्रित करने वाली कोशिकाएँ कम होने लगती हैं। हालांकि बुजुर्गों को कम से कम 5 घंटे नींद लेनी चाहिए, लेकिन आदर्श सीमा 7 से 8 घंटे है। पर्याप्त नींद से उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत बनी रहती है और स्मृति कमजोर होने से बचती है।
नींद की कमी के नुकसान
नींद की कमी सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। लगातार कम नींद लेने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है और व्यक्ति जल्दी बीमार पड़ सकता है। नींद की कमी मोटापा, डायबिटीज, हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर का कारण बन सकती है। मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ता है, जैसे चिड़चिड़ापन, तनाव और डिप्रेशन। नींद की कमी बच्चों और किशोरों में पढ़ाई और एकाग्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
अच्छी नींद के लिए टिप्स
अच्छी नींद पाने के लिए कुछ आदतें अपनाना जरूरी है। रोजाना एक निश्चित समय पर सोना और उठना नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है। सोने से पहले मोबाइल, टीवी और लैपटॉप जैसी स्क्रीन से दूरी बनाना चाहिए। कमरे का वातावरण शांत और आरामदायक होना चाहिए। हल्का और पौष्टिक भोजन करना और कैफीन से बचना नींद में सहायक होता है। नियमित योग और ध्यान करने से भी नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है।
नींद हर उम्र में जरूरी
नींद हर उम्र में जरूरी है, लेकिन उसकी अवधि उम्र के साथ बदलती है। नवजात शिशु को जहां लगभग 17 घंटे की नींद चाहिए, वहीं वयस्कों के लिए 7 से 9 घंटे और बुजुर्गों के लिए 7 से 8 घंटे पर्याप्त माने जाते हैं। नींद की कमी सेहत और मानसिक शांति दोनों को प्रभावित करती है। इसलिए उम्र के हिसाब से सही नींद लेना स्वस्थ और लंबी जिंदगी का सबसे बड़ा राज़ है।