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02/10/2025 4:43 pm

दलिया — भूला हुआ स्वास्थ्य, लौटता हुआ वरदान

वो दिन याद है जब स्कूल के मिड‑डे मील में दलिया ही मिलता था। अन्य तरह-तरह के व्यंजन थे, मगर हर दिन वही दलिया। मैं अक्सर सोचता था — आखिर स्कूलों में सिर्फ यही क्यों परोसा जाता है? आधुनिक समय में जब रोटी‑सब्ज़ी, नूडल्स, फास्ट फूड और पैकेज्ड आइटमों का बोलबाला हुआ, तब हमारा पारंपरिक दलिया कुछ इस तरह गायब हो गया कि रसोई में उसकी मौजूदगी ही दुर्लभ हो गई।

लेकिन एक यात्रा पर जब मैंने आदिवासी गाँवों का रुख किया, मुझे देखा कि वे दलिया विभिन्न प्रकार से बनाते हैं — दरदरा गेहूँ दलिया, चावल दलिया, कुटकी का दलिया, नागली (रागी) का दलिया आदि। और जब मैंने उन लोगों से संवाद किया, मुझे पता चला कि दलिया सिर्फ स्वाद का नाम नहीं — वह स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन का आधार है।

मेरा मानना है कि दलिया को “गरीबों का खाना” कह देना ही उसकी लोकप्रियता मिटाने की शुरुआत थी। जब हम भागती दौड़ती ज़िंदगी में फँसे रहे, हमने आसान विकल्पों को चुना — लेकिन शरीर धीरे-धीरे थका, रोग चढ़े, विज्ञान की तरक्की कहीं काम नहीं आई। आज समय है — उस पगडंडी की ओर वापसी करने का — जो हमें फार्मेसी और अस्पतालों के चक्कर नहीं, स्वास्थ्य की राह दिखाए।
वे कारण जिनसे दलिया हमारी रसोई से गायब हो गया

ये कुछ कारण हैं जिनसे दलिया “भुला हुआ” आहार बन गया:

फूड मार्केट और विज्ञापन का प्रभाव
पैकेज्ड फूड, नूडल्स, रेडी-टू-इट आदि के विज्ञापन ने लोगों की रुचि बदल दी। स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों की तुलना में वे त्वरित, स्वादिष्ट और दिखने में आकर्षक लगे।

समय की कमी और भागदौड़ जीवनशैली
आज अधिकांश लोग काम, स्कूल, ट्रैफिक, मीटिंग्स में उलझे हैं। “तुरंत तैयार होने वाला” खाना अधिक प्रिय हुआ। दलिया, जिसे पकाने और संभालने की थोड़ी तैयारी चाहिए, वह पीछे छूट गया।

सामाजिक प्रतिष्ठा और मानसिकता
“गरीबों का खाना” या “पारंपरिक खानपान पिछड़ा हुआ है” जैसी सोच ने पारंपरिक व्यंजनों की गरिमा कम कर दी। कुछ लोग उसे सरल या कम महत्व वाला मानने लगे।

चक्की उद्योग और अनाज प्रसंस्करण
प्रसंस्कृत आटे, मैदा, ग्रेडन अनाजों की उपलब्धता और उन्हें बेहतर दिखाने की कोशिश ने स्थानीय अनाज और दलिया विकल्पों को दबा दिया।

स्वाद की आदतें बदलना
जो स्वाद बच्चों को उपन्यास, मीठा, नमकीन, जंक फूड आदि ने दिया, वे पारंपरिक स्वादों की ओर झुकाव कम कर गए।

ज्ञान का अभाव
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि दलिया कितनी स्वास्थ्यवर्धक वस्तु है। जानकारी का अभाव कारण बना कि लोग सहज विकल्पों की ओर मुड़ गए।

गांव देहात: जीवनशैली विकारों से क्यों दूर?

कई ग्रामीण और आदिवासी समुदाय आज भी लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर (मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग आदि) की समस्याओं से बहुत हद तक दूर हैं।

कारण:

पारंपरिक आहार — वे अधिकतर दलिया, ज्वार, बाजरा, रागी, बाज्राहीन अनाज आदि खाते हैं — जिन्हें पचाना आसान, पोषण संतुलित और ऊर्जा स्थिर उत्पादक माना जाता है।

शारीरिक गतिविधि — खेती, चराई, जंगल, दैनिक श्रम आदि जीवनशैली का हिस्सा हैं — शारीरिक क्रियाशीलता बनी रहती है।

तनाव का कम स्तर — शहरी जीवन की भागदौड़, समय की कमी, दबाव आदि ग्रामीण जीवन में अपेक्षाकृत कम है।

रसायन एवं संसाधित खाद्य कम उपयोग — पैकेज्ड, जंक फूड, अधिक तेल मसाला आदि कम होते हैं।

परिवार और समुदाय जुड़ाव — सामाजिक मेलजोल, परंपराएँ, सामूहिक गतिविधियाँ जीवन में सामंजस्य बनाए रखती हैं।

इसलिए यह कहना अकेला नहीं कि वे “गरीब हैं” — असल में उनकी जीवनशैली और आहार संरचना हमें सीख देने लायक है।

कैसे वापस लाएँ दलिया — सरल कदम और सुझाव

अगर आप खुद या परिवार में दलिया फिर से शामिल करना चाहते हैं, तो ये उपाय मदद कर सकते हैं:

हर हफ्ते एक दिन तय करें — “दलिया दिवस” जैसे — जिसमें दलिया नाश्ते या डिनर में ज़रूर हो।

अनाज चक्की जाँचे — आस-पास की आटा चक्की पता करें जो साबुत अनाज या दरदरा आटा देती हो। वहाँ से दलिया के लिए दरदरा अनाज लें।

विभिन्न प्रकार आज़माएँ — गेहूँ दलिया, ज्वार दaliya, बाजरा दaliya, रागी / नगली दaliya आदि — स्वाद और पोषण में विविधता लाएँ।

स्वाद बढ़ाएँ लेकिन साधारण रखें — गुड़, सूखे मेवे, हल्का घी, मसालों (इलायची, दालचीनी) से स्वाद जोड़ें — लेकिन बहुत अधिक मिठास या तेल न डालें।

बच्चों और युवाओं को समझाएँ — बुजुर्गों से ख़ानपान की कहानियाँ जानें, उनके अनुभव साझा करें — उन्हें जोड़ें।

धीरे शुरू करें — शुरुआत में १०–१५ मिनट अधिक समय देना होगा — लेकिन धीरे-धीरे यह आसान हो जाएगा।

दुसरे खाद्यों को धीरे-धीरे घटाएँ — नूडल्स, रेडी टू ईट फूड की जगह दलिया आधारित व्यंजन Introduce करें।

समूह प्रयोजन — यदि संभव हो, स्कूल, सामुदायिक केंद्र या ऑफिस में “दलिया वितरण कार्यक्रम” करें, awareness बढ़ाएँ।

एक सरल दलिया रेसिपी (मिष्ठ व नमकीन)

मीठा दलिया (गुड़ आधारित)

दरदरा गेहूँ दलिया को हल्की आंच परपर भूनें।

गुड़ को गुनगुने पानी में घोलकर छाने।

दलिया में गुड़ घोल मिलाएँ और थोड़ी देर पकाएँ।

थोड़ी इलायची पाउडर, सूखे मेवे जैसे काजू, बादाम डालें।

स्वादानुसार घी की बूंद दें और गरम-गरम परोसें।

नमकीन दलिया (सब्ज़ियों सहित खिचड़ी प्रकार)

दलिया + मूंग (खुली मूंग) + सब्जियाँ (गाजर, मटर आदि) धोकर रखें।

हल्का जीरा, हींग, कड़ाही में घी और मसाले डालें।

सब्जियाँ, मसाले, पानी डालें और दलिया-मूंग मिलाएँ।

धीमी आंच पर पकाएँ जब तक दलिया मुलायम न हो जाए।

हरा धनिया, नमक और नींबू मिला कर गरम-गरम परोसें।

ये दोनों प्रकार आसानी से सुबह या शाम में बनाए जा सकते हैं — पौष्टिक और हलके।

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