Explore

Search

03/10/2025 2:55 pm

डायबिटीज और हाइपरटेंशन से बचाव में दातून का देसी ज्ञान

तेजी से बदलती जिंदगी और खानपान की आदतों ने हमारे शरीर को कई बीमारियों से घेर लिया है। आज हर घर में कोई न कोई डायबिटीज या हाइपरटेंशन के रोगी मिल जाएगा। लेकिन ज़रा पीछे जाकर सोचे कि 1990 से पहले हालात कैसे थे। उस समय न तो इतनी दवाइयाँ आम थीं, न ही हर गली-मोहल्ले में ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर चेक कराने वाले लैब्स थे। हां, बीमारियां थी लेकिन आज की तरह आम नहीं थीं। यह फर्क क्यों आया? इसकी सबसे बड़ी वजह मानी जाती है हमारे खानपान और जीवनशैली में आए बदलाव, और इनमें सबसे खास बात यह है कि उस समय गाँव-देहात और यहां तक कि शहरों में भी लोग दातून का इस्तेमाल करते थे।

दातून से दूर होकर बढ़ीं समस्याएं

जब टूथपेस्ट और माउथवॉश बाजार में आए तो उन्हें आधुनिकता और स्वच्छता का प्रतीक मान लिया गया। धीरे-धीरे दातून को पिछड़ेपन की निशानी बना दिया गया। लेकिन असल नुकसान तभी शुरू हुआ। टूथपेस्ट और माउथवॉश मजबूत एंटीमाइक्रोबियल होते हैं, यानी ये हमारे मुंह के 99% से ज्यादा बैक्टिरिया का नाश कर देते हैं। इसमें नुकसानदेह बैक्टिरिया तो खत्म होते ही हैं, लेकिन साथ ही वो अच्छे बैक्टिरिया भी नष्ट हो जाते हैं जो हमारे शरीर की सेहत बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी हैं।

इनमें सबसे अहम भूमिका निभाने वाले बैक्टिरिया वही होते हैं जो हमारे शरीर के नाइट्रेट (NO3-) को नाइट्राइट (NO2-) और फिर नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) में बदलते हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड ब्लड प्रेशर को संतुलित रखने में मुख्य भूमिका निभाता है। जब यह घटता है तो ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है और शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेंस की समस्या भी जन्म ले लेती है, यानी डायबिटीज का खतरा। रिसर्च यह साबित कर चुकी हैं कि जिन लोगों में नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी होती है, उनमें डायबिटीज और हाइपरटेंशन का खतरा अधिक होता है।

क्या कहते हैं शोध

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिसर्च ने इस तथ्य की पुष्टि की है। जर्नल ऑफ क्लिनिकल हाइपरटेंशन (2004) में छपे एक रिव्यू ने साफ कहा कि नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी ब्लड प्रेशर को सीधा प्रभावित करती है। इसके अलावा ब्रिटिश डेंटल जर्नल (2018) में प्रकाशित एक स्टडी में पाया गया कि जो लोग दिन में दो बार माउथवॉश का इस्तेमाल करते थे, उनमें तीन साल बाद डायबिटीज या प्री-डायबिटिक कंडीशन पाई गई। यह खतरा 50% से ज्यादा था। सोचिए, जो चीज हम अपने दांतों को बचाने के लिए रोज इस्तेमाल कर रहे हैं, वही हमारे पूरे शरीर की बीमारियों की जड़ बन सकती है।

दातून कैसे है फायदेमंद

गाँव-देहातों में आज भी लोग दातून का इस्तेमाल करते हैं और ज्यादा देखा जाए तो डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां वहां अपेक्षाकृत बेहद कम हैं। इसका कारण यही है कि दातून दांतों और शरीर दोनों को फायदा पहुंचाता है।

नीम और बबूल की दातून पर हुई जर्नल ऑफ क्लिनिकल डायग्नोसिस एंड रिसर्च की एक क्लिनिकल स्टडी में साबित हुआ कि यह स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस नामक बैक्टिरिया को रोकता है, जो दांतों को सड़ाता है और कैविटी का कारण बनता है। लेकिन इसमें ऐसे रसायन नहीं होते जो हमारे अच्छे बैक्टिरिया को मार दें। यानी दातून से दांत भी बचते हैं और शरीर के जिन बैक्टिरिया से नाइट्रिक ऑक्साइड बनता है, वो भी सुरक्षित रहते हैं। यही कारण है कि दातून से ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है और डायबिटीज का जोखिम कम हो जाता है।

देसी ज्ञान में छुपा आधुनिक विज्ञान

हमारे आदिवासी और ग्रामीण समुदाय दातून करने के बाद अक्सर एकाध बार थूकते हैं, लेकिन इसके बाद दांतों को घिसते हुए लार को निगलते जाते हैं। इसका सीधा वैज्ञानिक महत्व है। दरअसल हमारी लार में ही नाइट्रिक ऑक्साइड बनने की पूरी प्रक्रिया शुरू होती है। लेकिन जब हम माउथवॉश से लार के जरूरी बैक्टिरिया को खत्म कर देते हैं, तो यह पूरी प्रक्रिया रुक जाती है। वहीं, दातून लार के प्रवाह को बढ़ाता है और उसे सक्रिय रखता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।

यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने कहा—
“बासी पानी जो पिये, और नित हरा खाय।
मोटी दतुअन जो करे, वो घर बैद्य न जाय।।”

इसमें स्पष्ट संदेश है कि साधारण जीवनशैली, हरी सब्जियों का सेवन और दातून के उपयोग से इंसान को डॉक्टर के पास जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

आज की ज़रूरत

आज जब हर घर में ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की दवा मिलती है, तब हमें यह सोचना होगा कि आखिर समस्या कहां से शुरू हुई। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने अपने देसी ज्ञान को किनारे रख दिया। दातून सिर्फ दांत साफ करने का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारी पूरी सेहत को संभालने का उपाय है। अब समय है कि हम टूथपेस्ट और माउथवॉश की जगह फिर से दातून को अपनाएं, क्योंकि यह सिर्फ हमारी मुस्कान ही नहीं बल्कि हमारे दिल और शरीर को भी स्वस्थ रखने का सबसे आसान उपाय है।

Leave a Comment