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16/12/2025 3:12 pm

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महाभारत की कथा-भय से उबरने की कला

कहानी प्रारंभ होती है महाभारत काल में, जब कृष्ण और बलराम घने जंगल से चल रहे थे। रात होने की वजह से आगे बढ़ना कठिन था और वे वहीं रुकने का निर्णय लेते हैं। बलराम डरते हैं क्योंकि जंगल में खतरा हो सकता है। कृष्ण प्रस्ताव रखते हैं कि वे बारी-बारी रात में पहरा देंगे: पहले कृष्ण सोएँगे, बलराम पहरा देंगे; फिर जब बलराम थक जाएँ तो कृष्ण जागकर पहरा देंगे।

इस तरह कथा आरंभ होती है — लेकिन रात में एक भयंकर राक्षस आता है। उसका स्वर, उसका प्रकोप, भय की विकृति — धीरे-धीरे बलराम का आकार सिकुड़ता जाता है, राक्षस विशाल होता जाता है। अंततः जब कृष्ण जागते हैं, वे साहस से राक्षस का सामना करते हैं। धीरे-धीरे राक्षस का आकार घटता है, और कृष्ण उसे अपनी हथेली में बाँध लेते हैं।

इस कथा में दो विरोधी दिशाएँ हैं: भय (राक्षस) और साहस (कृष्ण)। और ये बताती हैं — कैसे भय हमें छोटा करता है और कैसे सामना हमें बड़ा बनाता है।

नीचे हम इस कथा को विभिन्न पहलुओं में विभाजित कर, उसके जीवन-गुण, आध्यात्मिक और व्यवहारिक शिक्षा को समझेंगे।

१. भय का असर: जब हम “भाग” जाते हैं

भय और उसका विकृति प्रभाव

जैसे ही बलराम ने उस राक्षस का स्वर सुना, भय ने उन्हें विकल कर दिया। उन्होंने स्वयं को छोटा महसूस किया — एक प्रतीकात्मक दृष्टि से — और राक्षस को विशाल बना दिया। भय ने उनकी मानसिक स्थिति पर नियंत्रण कर लिया।

भय का मूल गुण है — वह अवचेतन स्तर पर मनुष्य को संकुचित कर देता है, वह आक्रामकता, नकारात्मक कल्पनाओं, हताशा, विवेक बाधा उत्पन्न करता है। जब हम किसी समस्या या डर से भागते हैं — न कि उसका सामना करते हैं — तो हमारा मन उसमें उलझ जाता है। यह विकृति धीरे-धीरे समस्या को बढ़ा देती है, हमें असहाय महसूस कराती है।

इस घटना में, बलराम ने राक्षस से छुपने का मन बना लिया, या भागने का — लेकिन भागने का मन ही उसे और कमजोर बनाता गया। भय का स्वर, भय की कल्पना, भय की कल्पना से हम अक्सर समस्या का वास्तविक आकार ही बढ़ा देते हैं।

जीवन की उपयोगिता: जब आपके सामने कोई बड़ी चुनौती हो — जैसे महत्वाकांक्षा, असफलता, आलोचना, कोई जोखिम — यदि आप उससे भागेंगे, भय आपके आकार में वृद्धि कर देगा।

२. सामना करने का गुण: जब हम “डर” से उलट खड़े होते हैं

साहस और आत्मविश्वास बढ़ने की प्रक्रिया

कथा में जैसे ही कृष्ण जागते हैं और वे उस राक्षस से संवाद करते हैं, उनका मन शांत और दृढ़ है — वे डरते नहीं। उसी साहस से उनका आकार (प्रतीकात्मक रूप से) बढ़ जाता है, और राक्षस का आकार घटने लगता है।

यह जीवन का मूल सबक है — जब हम भय का सामना करते हैं, डर की ओर बोलते हैं, उसकी निंदा नहीं करते, बल्कि पूछते हैं “तुम क्या चाहते हो?” — तभी भय प्रतिक्रिया देने लगता है। डर के सामने आत्मविश्वास, विवेक, प्रेम और धैर्य काम करते हैं।

जीवन में यदि किसी समस्या से जबरदस्ती सामना करें — जैसे स्वास्थ्य समस्या, मानसिक तनाव, बाधाएँ — तब भय आत्म-संयम एवं धैर्य से पंगु बन जाती है। हम उस पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं।

कथानक में यह घटता है जब राक्षस “पूछता है” कि तुम्हें क्या चाहिए — और कृष्ण मुस्कुरा कर उसका नियंत्रण कर लेते हैं। यह संकेत है कि डर को, समस्या को संवाद करना चाहिए — उनसे जंग नहीं करना चाहिए।

३. परिवर्तन का चमत्कार: डर छोटा, हम बड़े

भय से विजय की प्रतीकपूर्ण छवि

जब राक्षस अंततः सिकुड़ कर बिलकुल छोटा हो जाता है, तो कृष्ण उसे हथेली में बांध लेते हैं — और फिर उसकी धारणा बदल जाती है। बलराम जब देखते हैं, तो हैरान होते हैं कि वह राक्षस पहले बड़ा था, अब इतनी छोटी वस्तु कैसे हो गई?

यह हमें बताता है — डर, समस्या, बाधाएँ — सब केवल प्रतीकात्मक रूप से बड़े दिखते हैं, जब हम उनसे सामना नहीं करते। लेकिन एक बार हम आत्म-संयम, साहस और दृढ़ता से खड़े हों — तो वह डर हमारे भीतर नष्ट हो जाता है।

यह परिवर्तन चमत्कारी नहीं, बल्कि प्रक्रिया है — डर हमें नियंत्रित करता है जब तक हम न जागें। जैसे ही हम जागते हैं (आत्म-जागरूकता), भय पिघलने लगता है, हम बड़े बनते हैं।

जीवन में, हर कठिनाई — चाहे वह आर्थिक संकट हो, पारिवारिक तनाव हो, स्वास्थ्य समस्या हो, आत्म-संदेह हो — यदि हम उसका सामना करें, उसमें वृद्धि नहीं होती; वह घटने लगती है।

४. जीवन परिप्रेक्ष्य: भय का प्रतिदान देना सीख

भय से उबरने की रोज़मर्रा की कला

इस कथा से हम निम्न व्यावहारिक जीवन-उपाय सीख सकते हैं:

  1. स्वीकार करना — पहले यह स्वीकार करें कि डर या समस्या है। जैसे कृष्ण ने डर को नकारा नहीं, बल्कि उससे संवाद किया।

  2. धैर्य और आत्मशांत — डर और समस्या सामने आते ही जड़ा शांत हो जाना चाहिए। उत्तेजना या जल्दबाजी नियंत्रण खोने का कारण है।

  3. पूछना, संवाद करना — समस्या, भय से कहें “तुम क्या चाहते हो?” — यह एक आंतरिक संवाद है, न कि बाह्य संघर्ष।

  4. आत्मविश्वास बढ़ाना — स्वयं को याद दिलाएँ कि आप बड़े हैं, आप समर्थ हैं।

  5. निरंतर अभ्यास — प्रत्येक भय या समस्या में यह प्रक्रिया दोहराएँ; धीरे-धीरे डर अपनी आकार खो देगा।

  6. दूसरों के अनुभव से सीखना — इस तरह की कथाएँ, साहित्यिक दृष्टांत, प्रेरणा स्रोत होते हैं — हम उनसे दिशा ले सकते हैं।

ये उपाय साधारण दिखते हैं, किंतु अभ्यास से जीवन को बड़ा और समृद्ध बनाने में सक्षम होते हैं।

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