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02/10/2025 6:30 pm

क्या वास्तव में उम्र और बीमारी का जिम्मेदार प्रोटीन की कमी है? जानिए सच

हम अक्सर सुनते हैं कि “बुढ़ापा और बीमारी प्रोटीन की कमी से होती है।” डॉक्टर, विज्ञापन, और अक्सर सोशल मीडिया पर, हमें यह बताया जाता है कि अगर हमारे खाने में पर्याप्त प्रोटीन नहीं है, तब मांसपेशियों का क्षय (muscle loss), कमजोरी, और उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ तेजी से बढ़ती हैं। तब ‘प्रोटीन पाउडर’ का डब्बा हमें समाधान के रूप में ऑफर किया जाता है—“इतना वजन, उतने ग्राम प्रोटीन”—और इससे हमें लगता है कि यह ही हमारी सेहत बचा सकता है। पर सवाल उठता है—क्या सच में ऐसा है? क्या किसी ने प्रोटीन पाउडर लेने से उम्र नहीं बढ़ी, या बीमारी नहीं हुई?

उम्र बढ़ना एक प्राकृतिक प्रक्रिया

सबसे पहले, यह समझना ज़रूरी है कि उम्र बढ़ना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। हमारी कोशिकाएँ, इम्यून सिस्टम, और शरीर के कार्य धीरे-धीरे कमज़ोर होते जाते हैं—यह कोई उद्योग नहीं बना रहा, यह प्रकृति का नियम है। इस प्राकृतिक प्रक्रिया को “प्रोटीन की कमी” से जोड़ना उचित नहीं है।

वहीं दूसरी ओर, यह भी सच है कि भारत में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का अल्प सेवन एक बड़ी चुनौती है। कई सर्वे बताते हैं कि लगभग 73% भारतीय लोग दैनिक आधार पर पर्याप्त प्रोटीन नहीं लेते, और केवल करीब 10% लोग ही अपने दैनिक आहार से प्रोटीन की आवश्यकता पूरी करते हैं. । यह मुख्यतः ग्रामीण और निम्न-आय वर्गों में देखा गया है, जहाँ डेयरी, अंडे, मांस और मछली जैसे स्रोत महंगे या कठिन उपलब्ध होते हैं. । इस कमी का मतलब यह नहीं कि हर कोई बीमारी या बुढ़ापा प्रोटीन पाउडर से बच सकता है, बल्कि इसका मतलब है कि हमारे पारंपरिक भोजन को पोषण की दृष्टि से और समृद्ध बनाना ज़रूरी है।

 

प्रोटीन इंडस्ट्री की भूमिका:

आज “प्रोटीन क्रेज” बहुत प्रभावशाली हो गया है। गूगल ट्रेंड्स बताते हैं कि “protein chips” और “protein bars” की खोजों में जून-अगस्त में पांच साल का उच्चतम उछाल आया था, खासकर दिल्ली में
। McDonald’s ने यहां सोया- और मटर-प्रोटीन वाला slice इतना लोकप्रिय किया कि 24 घंटे में 32,000 टुकड़े बिक गए. । इस प्रकार, प्रोटीन को एक “must-have” न्यूट्रिएंट के रूप में दर्शाया गया—और पाउडर वाले विकल्पों को समाधान की तरह पेश किया गया।

 

लेकिन क्या प्रोटीन पाउडर प्राकृतिक भोजन का विकल्प है? पारंपरिक रूप से जो पहलवान, कुदरती जीवन जीने वाले आदिवासी समुदाय रहे हैं—उन्होंने कभी पाउडर नहीं लिया, लेकिन अंकुरित अनाज, ड्राई फ्रूट्स, ताज़ी सब्जियाँ, दाल-मसूर आदि जैसे शुद्ध और पौष्टिक आहार से अपनी शारीरिक शक्ति और दीर्घायु बनाए रखी। चमकदार विज्ञापनों में बताये गए “प्रोटीन की कमी” को सच मान लेते हुए हम यह भूल जाते हैं कि पूरा भोजन, विविधता, और संतुलन ही असली ताकत है।

विज्ञान क्या कहता है?
पठनीय शोध बताते हैं कि मिड-लाइफ में, खासकर पर्याप्त पौधे आधारित प्रोटीन लेने से “हेल्दी एजिंग” की संभावना बढ़ जाती है. एक हाल का अध्ययन बताता है कि प्लांट-बेस्ड भोजन + उचित मात्रा में हेल्दी एनिमल-बेस्ड फूड्स का संयोजन उम्र के साथ बेहतर स्वस्थ जीवन की ओर ले जाता है. वहीं, वृद्धों में पर्याप्त प्रोटीन न मिलने से मांसपेशियों की हानि (sarcopenia) होती है—जो असली कमजोरी और गिरने का जोखिम बढ़ाता है। लेकिन एकदम अति-प्रोटीन या रेड मीट पर निर्भर रहना भी जोखिम भरा हो सकता है, जैसे 50 वर्ष से ऊपर महिलाओं में अधिक लाल मांस खाने से उम्र-संबंधी कमजोरी बढ़ सकती है। इसलिए संतुलन ज़रूरी है।

प्राकृतिक भोजन से क्या लाभ है?

हरी सब्जियाँ, फल, अंकुरित अनाज और ड्राई फ्रूट्स जैसे प्राकृतिक आहार विटामिन, मिनरल, फाइबर और पौधे आधारित प्रोटीन स्रोत प्रदान करते हैं। ये शरीर की इम्यूनिटी मजबूत करते हैं और सूजन (inflammation) को कम करते हैं—कुछ शोध कहते हैं कि उम्र संबंधित “क्रॉनिक इंफ्लेमेशन” आधुनिक जीवनशैली के कारण होती है, उम्र की वजह से नहीं. आदिवासी या प्राकृतिक आहार पर जीने वाले समुदायों (जैसे कि Tsimane, Orang Asli) में उम्र बढ़ने के बावजूद क्रॉनिक रोगों का नहीं बढ़ना इस सोच को बल देता है कि भोजन और जीवनशैली ही असली कुंजी है।

बीमारी का दोष “प्रोटीन की कमी”

बुढ़ापा और बीमारी का दोष “प्रोटीन की कमी” पर डालना बहुत सरल दृष्टिकोण है। प्रोटीन महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पाउडर से नहीं, पूरे, विविध और संतुलित भोजन से मिलता है। गाय, अंडा, पनीर आदि स्रोतों पर निर्भरता बनाने के बजाय हमें प्राकृतिक, पौष्टिक व पौधे आधारित आहार को अपनाना चाहिए और जहाँ संभव हो, स्थानीय, सुलभ प्रोटीन स्रोत (दाल-चने, अंकुरित अनाज, मूंगफली, हरी सब्जियाँ) का सेवन बढ़ाना चाहिए।

सबसे सरल उपाय

इस मिथक का सामना करने का सबसे सरल उपाय है—विज्ञान आधारित जानकारी, संतुलित भोजन, और जीवनशैली सुधार: हरी सब्जियाँ, फल, अंकुरित अनाज साथ में हल्के प्रोटीन स्रोत, नियमित व्यायाम, अच्छी नींद और तनाव प्रबंधन—इसी से स्वस्थ और लंबे जीवन की नींव बनती है।

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