पिछले चार दशकों से “कोलेस्ट्रॉल” को दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य दुश्मन बताया गया। डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और दवा कंपनियों ने मिलकर लोगों में ऐसा डर बैठाया कि उन्होंने घी, मक्खन, तेल, अंडे और नट्स जैसे प्राकृतिक खाद्य पदार्थों से दूरी बना ली।
1970 के दशक से लेकर आज तक, कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं (स्टैटिन्स) का बाजार अरबों डॉलर में फैला — केवल अमेरिका में ही लगभग 1.5 खरब डॉलर का कारोबार हुआ।
लेकिन अब जब सच्चाई सामने आ रही है, तो विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह एक “कोलेस्ट्रॉल घोटाला (Cholesterol Scam)” था — एक ऐसी थ्योरी जिसने पूरी दुनिया की भोजन शैली बदल दी।
कोलेस्ट्रॉल — दुश्मन नहीं, शरीर का साथी
नए चिकित्सा अध्ययनों में यह बात स्पष्ट हुई है कि कोलेस्ट्रॉल न तो अच्छा होता है, न बुरा — यह शरीर की हर कोशिका के लिए आवश्यक है।
यह न केवल नर्व सेल्स (nerve cells) के कार्य में, बल्कि स्टेरॉयड हार्मोन (steroid hormones) और विटामिन D के निर्माण में भी आवश्यक भूमिका निभाता है।
मानव शरीर को रोजाना लगभग 950 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है। इसमें से केवल 15-20% भोजन से आता है, जबकि शेष 80% कोलेस्ट्रॉल लिवर खुद बनाता है।
इसका मतलब यह है कि अगर हम भोजन से कोलेस्ट्रॉल नहीं लेते, तो शरीर को इसे बनाने में और अधिक मेहनत करनी पड़ती है — यानी ज्यादा तनाव झेलना पड़ता है।
ज्यादा कोलेस्ट्रॉल का मतलब हमेशा बीमारी नहीं
डॉक्टर अक्सर कहते हैं — “आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल ज्यादा है।” लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप बीमार हैं।
यदि शरीर में कोलेस्ट्रॉल स्तर ऊँचा है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपका लिवर सक्रिय और सक्षम है।
शरीर में यह तत्व कोशिकाओं की मरम्मत करता है और हार्मोनल संतुलन बनाए रखता है।
समस्या तब होती है जब शरीर में सूजन (inflammation), ऑक्सीडेशन और कैल्सीफिकेशन की प्रक्रिया तेज हो जाती है — और असली अपराधी यहीं छिपा है।
असली दोषी — “कैल्सीफिकेशन” न कि कोलेस्ट्रॉल
पहले कहा गया कि धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमने से ब्लॉकेज बनते हैं और दिल का दौरा पड़ता है।
लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है कि धमनियों के बंद होने का कारण “कैल्सीफिकेशन (Calcification)” है — यानी रक्त वाहिकाओं में कैल्शियम के जमाव की प्रक्रिया।
यही कैल्सीफिकेशन गुर्दों, पित्ताशय और गॉलब्लैडर में पथरी (stones) का कारण भी बनता है।
इसलिए केवल कोलेस्ट्रॉल घटाने से नहीं, बल्कि शरीर में सूजन और कैल्शियम असंतुलन को रोकने से ही दिल की बीमारियों से बचाव संभव है।
रिफाइंड तेलों का जाल और घी-मक्खन का अपमान
वर्षों तक डॉक्टरों ने लोगों को घी और मक्खन से दूर रहने की सलाह दी, जबकि असली नुकसान रिफाइंड तेलों से हो रहा था।
रिफाइंड तेलों में अत्यधिक ट्रांस फैट्स और केमिकल सॉल्वेंट्स होते हैं, जो धमनियों की दीवारों को नुकसान पहुंचाते हैं और ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं।
वहीं देसी घी, सरसों का तेल, नारियल तेल और घानी तेल (cold-pressed oils) शरीर के लिए अमृत समान हैं — ये प्राकृतिक रूप से कोलेस्ट्रॉल को संतुलित रखते हैं और लिवर को स्वस्थ रखते हैं।
अब वैज्ञानिक भी स्वीकार कर रहे हैं कि “रिफाइंड तेल उद्योग” ने भी कोलेस्ट्रॉल के डर का भरपूर फायदा उठाया।
अमेरिकी विभाग का यू-टर्न — आधी सदी बाद स्वीकारोक्ति
अमेरिकी चिकित्सा विभाग (U.S. Department of Health) ने अब अपने दिशानिर्देशों में बड़ा बदलाव किया है।
जिन खाद्य पदार्थों को कभी “कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने वाला” कहा गया था — जैसे अंडा, मक्खन, चीज़, नारियल तेल — उन्हें अब निषेध सूची से हटा दिया गया है।
डॉ. स्टीवन निसेन (Cleveland Clinic) और डॉ. चेरिस मास्टरजान जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि “हम चार दशकों से गलत दिशा में जा रहे थे।”
अब यह स्वीकार किया गया है कि “आहार कोलेस्ट्रॉल का रक्त कोलेस्ट्रॉल पर बहुत कम असर होता है।”
आयुर्वेद की दृष्टि — असली संतुलन तीन दोषों में है
जबकि पश्चिमी चिकित्सा बार-बार अपनी थ्योरी बदलती रही, आयुर्वेद हजारों वर्षों से एक ही सिद्धांत पर अडिग है — शरीर का स्वास्थ्य वात, पित्त और कफ के संतुलन पर निर्भर करता है।
जब यह संतुलन बिगड़ता है, तभी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
आयुर्वेद कहता है कि घी, तेल, दूध, अनाज, दालें आदि प्राकृतिक तत्व शरीर को स्थिरता, ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता देते हैं।
घी “सत्वगुण” को बढ़ाता है, जिससे मन और मस्तिष्क शांत रहते हैं, जबकि रिफाइंड तेल “राजसिक” और “तामसिक” प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं — यानी बेचैनी, गुस्सा और असंतुलन।
जीवनशैली में सुधार ही असली दवा है
बीमारियों का मूल कारण केवल आहार नहीं, बल्कि जीवनशैली (Lifestyle) है।
फास्टफूड, तनाव, नींद की कमी, कृत्रिम दवाओं का अत्यधिक सेवन — ये सब हमारे शरीर की प्राकृतिक लय को बिगाड़ते हैं।
यदि हम प्रकृति के करीब रहें, सूर्योदय के साथ उठें, समय पर भोजन करें, योग और प्राणायाम करें, तो न तो कोलेस्ट्रॉल की समस्या होगी और न ही हृदय रोग की।
आयुर्वेद हमें सिखाता है — “रोग वही है जो असंतुलन से जन्म ले, और स्वास्थ्य वही है जो संतुलन से लौट आए।”
कोलेस्ट्रॉल नहीं, गलत जानकारी से डरें
आज यह स्पष्ट है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर का दुश्मन नहीं, बल्कि रक्षक है।
हमारे लिवर की कार्यक्षमता, हार्मोनल स्वास्थ्य और कोशिका निर्माण के लिए इसकी आवश्यकता होती है।
दुनिया को जिस “कोलेस्ट्रॉल फोबिया” में रखा गया, उसने न केवल आहार संस्कृति को बिगाड़ा बल्कि अरबों लोगों को गलत दिशा में धकेल दिया।
अब वक्त है सच्चाई को स्वीकारने का — प्राकृतिक आहार, देशी घी, संतुलित जीवनशैली और आयुर्वेद के सिद्धांत ही निरोगी जीवन की असली कुंजी हैं।







