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16/12/2025 12:11 am

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IBS (Irritable Bowel Syndrome) यानी आयुर्वेदिक ‘ग्रहणी दोष’ का संपूर्ण उपचार

आयुर्वेद में IBS को “ग्रहणी दोष” के रूप में समझाया गया है, जहाँ जठराग्नि यानी पाचनाग्नि असंतुलित होकर भोजन को पूर्ण रूप से पचाने में असमर्थ हो जाती है। जब अग्नि कमजोर होती है तो भोजन आंतों में सही तरह नहीं पचता, जिससे दस्त, कब्ज, गैस, पेट में मरोड़ और असंतोषजनक मल त्याग जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यह रोग केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक कारणों से भी जुड़ा होता है और जब यह चक्र बढ़ता है तो रोगी की दिनचर्या, मानसिक स्थिति और जीवन की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

वात और पित्त की विकृति: रोग की जड़

IBS में वात और पित्त दोष मुख्य कारण माने जाते हैं। वात बढ़ने पर आंतों की गति अनियमित और तेज हो जाती है, जिससे बार-बार पतला मल आता है। दूसरी ओर पित्त की वृद्धि जठराग्नि को कभी तीव्र, कभी मंद बना देती है। परिणामस्वरूप रोगी एक समय दस्त तो दूसरे समय कब्ज का अनुभव करता है। अत्यधिक चाय-कॉफी, तला-भुना भोजन, फास्ट फूड, रात में देर से खाना, मानसिक तनाव और क्रोध जैसी स्थितियाँ इस विकार को और बढ़ाती हैं।

IBS के प्रमुख लक्षण: शरीर और मन दोनों प्रभावित

IBS के रोगियों में आम तौर पर पेट में भारीपन, गर्मी, दस्त-कब्ज का बदलाव, बार-बार गैस बनना, भूख का अनियमित होना, कमजोरी, वजन घटना, चिपचिपा मल और मल त्याग के बाद भी अधूरापन महसूस होना शामिल है। कई मरीज सुबह उठते ही शौचालय की चिंता में रहते हैं और पूरा दिन मानसिक तनाव में गुजरता है। नींद का टूटना और मन में बेचैनी इस रोग को और बढ़ाती है, जिससे शरीर और मन दोनों प्रभावित होते हैं।

आयुर्वेद में उपचार का मुख्य सिद्धांत—जठराग्नि को मजबूत करना

आयुर्वेद का मानना है कि जब तक जठराग्नि को संतुलित नहीं किया जाता, तब तक पाचन संबंधी रोगों का स्थायी उपचार संभव नहीं। इसलिए IBS का मूल उपचार अग्नि को सुदृढ़ करना, वात-पित्त को संतुलित करना और आँतों की क्रिया को सामान्य करना है। यह उपचार औषधि, आहार और जीवनशैली—तीनों के समन्वय पर आधारित होता है।

आहार: हल्का, गर्म और सुपाच्य भोजन ही दवा है

IBS में भोजन का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। रोगी को समय पर, सीमित मात्रा में और हल्का भोजन लेना चाहिए। मूंग दाल खिचड़ी, दलिया, सादा चावल, सब्जियों का सूप, लौकी, कद्दू, तोरी और हल्दी, अदरक, जीरा, अजवायन, हींग जैसे पाचन सुधारक मसाले अत्यंत लाभ देते हैं। दोपहर में दही-भात लाभकारी है जबकि रात में भोजन हमेशा हल्का होना चाहिए।
जंक-फूड, मैदा, तला हुआ खाना, ठंडा पानी और कोल्ड ड्रिंक्स पूरी तरह छोड़ देना चाहिए। बहुत अधिक फाइबर जैसे कच्ची सलाद, राजमा, छोले आदि शुरुआती समय में समस्या बढ़ा सकते हैं, इसलिए धीरे-धीरे शामिल किए जानें चाहिए।

मानसिक संतुलन: IBS का सबसे महत्वपूर्ण इलाज

IBS एक ऐसा रोग है जहाँ मन और आँतों का सम्बन्ध अत्यंत संवेदनशील होता है। जैसे ही तनाव बढ़ता है वैसे ही दस्त, गैस और पेट दर्द बढ़ जाते हैं। इसलिए रोगी को तनाव नियंत्रण की कला सीखनी होगी। प्राणायाम, ध्यान, अनुलोम-विलोम, वज्रासन, पवनमुक्तासन और भुजंगासन IBS में अद्भुत लाभ करते हैं। रोजाना 30 मिनट की सैर भी आंतों को नियमित बनाती है और पाचनक्रिया को मजबूत करती है।

पानी और पाचन नियम—छोटी आदतें, बड़े लाभ

IBS रोगी को हल्का गर्म पानी पीना चाहिए और भोजन के साथ अधिक पानी पीने से बचना चाहिए क्योंकि यह पाचनाग्नि को कमजोर करता है। भोजन के 30 मिनट बाद या 30 मिनट पहले ही पानी ग्रहण करना चाहिए। छाछ में भुना जीरा और सेंधा नमक मिलाकर दोपहर में लेना अत्यंत लाभकारी है। अलोवेरा जेल, इसबगोल की उचित मात्रा, बेल का मुरब्बा और त्रिफला रात में लेने से आंतों की मजबूती बढ़ती है।

आयुर्वेदिक औषधियाँ—प्राकृतिक संतुलन का मार्ग

IBS में आंवला, द्राक्षासव, जीवनी-बल बढ़ाने वाले टॉनिक, बेल, इसबगोल भूसी, अदरक और पाचन-दोष निवारक हर्बल औषधियाँ उत्तम परिणाम देती हैं। यह औषधियाँ न केवल पाचन तंत्र बल्कि मानसिक संतुलन पर भी लाभकारी प्रभाव डालती हैं। नियमित सेवन से आंतों की सूजन कम होती है और मल त्याग की प्रक्रिया नियंत्रित होती है।

पंचकर्म—ग्रहणी दोष के लिए अत्यंत प्रभावी उपाय

आयुर्वेद में पंचकर्म को IBS का गहन उपचार माना गया है। विरेचन, बस्ती (औषधीय एनीमा), शिरोधारा आदि उपचार पित्त तथा वात को नियंत्रित करते हैं और मानसिक तनाव को शांत करते हैं। यह उपचार केवल विशेषज्ञ वैद्य की देखरेख में ही कराना चाहिए। पंचकर्म से आंतों की कार्यक्षमता बढ़ती है और रोग की पुनरावृत्ति कम होती है।

दिनचर्या का पालन और पर्याप्त नींद—उपचार का आधार

नींद पूरी न होने पर IBS के लक्षण तेजी से बढ़ जाते हैं। इसलिए electronics का अधिक उपयोग रात में बंद कर समय पर सोना चाहिए। जल्दी-जल्दी खाने से बचना, भोजन को अच्छी तरह चबाना, बैठकर शांति से खाना—ये सभी छोटी आदतें हैं पर इनसे पाचन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

IBS पूरी तरह नियंत्रित हो सकता है

IBS लंबा चलने वाला रोग है लेकिन आयुर्वेद इसे मूल से नियंत्रित कर स्थायी राहत प्रदान करता है। जब रोगी आहार-विहार का पालन करता है, मानसिक शांति बनाए रखता है और उचित औषधियाँ समय पर लेता है तो धीरे-धीरे बार-बार टॉयलेट जाने की आदत कम होती है, गैस और दर्द नियंत्रित होता है, शरीर हल्का और मन शांत महसूस होता है। यह रोग स्थायी नहीं है—धैर्य, नियमित पालन और सकारात्मक दृष्टिकोण से आयुर्वेद मरीज को पूर्ण स्वस्थता के मार्ग पर ले जाता है।

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