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02/10/2025 4:47 pm

नेत्रदान है जीवनदान: 40वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा पर रिम्स में नेत्रदाता परिवारों का सम्मान

मानव जीवन का सबसे अनमोल उपहार है – दृष्टि। आंखें केवल देखने का साधन नहीं बल्कि जीवन की रोशनी हैं, जो हमें इस संसार से जोड़ती हैं। परंतु दुर्भाग्य से देशभर में लाखों लोग कॉर्नियल अंधेपन की समस्या से जूझ रहे हैं। आधुनिक तकनीक होने के बावजूद, यदि नेत्रदान के प्रति समाज में जागरूकता न हो तो इन मरीजों के जीवन में उजाला नहीं आ सकता। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस वर्ष का 40वां राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा रिम्स, रांची के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान स्थित राजकीय नेत्र अधिकोष में बड़े उत्साह और भावनात्मक माहौल में मनाया गया। इस अवसर पर नेत्रदाता परिवारों का सम्मान कर उनके योगदान को पूरे समाज के सामने प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया गया।

दीपक अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता

कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्वलन से हुई, जिसमें प्रो. (डॉ.) शशि बाला सिंह, प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार, डॉ. पंकज कुमार समेत अन्य वरिष्ठ चिकित्सक मौजूद रहे। दीप प्रज्वलन के इस पवित्र क्षण ने यह संदेश दिया कि जैसे दीपक अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है, वैसे ही नेत्रदान जीवन भर अंधकार में जी रहे लोगों के जीवन में नई रोशनी ला सकता है।

निःशुल्क कॉर्निया प्रत्यारोपण

नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार ने इस अवसर पर जानकारी दी कि रिम्स का आई बैंक राज्य में लगातार उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। यहां एडवांस्ड केराटोप्लास्टी जैसी आधुनिक तकनीक से निःशुल्क कॉर्निया प्रत्यारोपण किया जाता है। जबकि निजी अस्पतालों में इसकी लागत 80 हजार से 1 लाख रुपये तक होती है। उन्होंने बताया कि यदि समाज के लोग नेत्रदान की प्रतिज्ञा लें तो राज्य में कॉर्नियल अंधेपन की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है।

आई बैंक विकसित करने की योजना

राज्य अंधापन नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. पंकज कुमार ने बताया कि अब तक रिम्स में 271 कॉर्निया रिट्रीवल और 171 सफल प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं। यह संख्या इस बात का प्रमाण है कि समाज धीरे-धीरे नेत्रदान की ओर जागरूक हो रहा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी आई बैंक विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है ताकि कॉर्नियल अंधेपन से पीड़ित लोगों को हर जगह समय पर मदद मिल सके।

नेत्रदान का संकल्प लेने की अपील

संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) शशि बाला सिंह ने बहुत ही भावुक शब्दों में कहा कि हम कुछ पलों का अंधकार भी सहन नहीं कर पाते, तो सोचिए वे लोग जिनका पूरा जीवन अंधकार में बीतता है, उनका दर्द कितना गहरा होता होगा। उन्होंने सभी से नेत्रदान का संकल्प लेने की अपील की।

मरीज निराश होकर नहीं लौटता

कार्यक्रम में SOTTO झारखंड के नोडल पदाधिकारी डॉ. राजीव रंजन ने भी महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि रिम्स आई बैंक की सक्रियता और समर्पण का ही परिणाम है कि यहां कॉर्निया प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा सूची नहीं है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इसका अर्थ है कि यहां कोई भी मरीज निराश होकर खाली हाथ नहीं लौटता।

नेत्रदाता परिवारों को सम्मानित

इस समारोह का सबसे भावनात्मक क्षण वह था जब नेत्रदाता परिवारों को सम्मानित किया गया। उन परिवारों ने अपनों के निधन के बाद भी दूसरों की जिंदगी में उजाला करने का संकल्प लिया। स्व. हीरामणि देवी (लोहरदगा), स्व. कुशल कुमार मुंडा (रामगढ़), स्व. मृदुला सिन्हा (रामगढ़), स्व. संतोष कुमार जैन (गिरिडीह), स्व. जेनेट हेरेंज (रांची), स्व. दीपक टोप्पो (बेड़ो), स्व. शारदा वोरा (रांची), स्व. राजकुमार प्रसाद (कुज्जु), स्व. लिता निर्मल कुजूर (रांची) एवं स्व. लोकेश चंद्र शर्मा के परिजनों को झारखंड की पारंपरिक शॉल, प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। यह सम्मान न केवल परिवार के लिए गौरव का क्षण था बल्कि समाज को यह प्रेरणा भी देता है कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी यदि हम दूसरों के बारे में सोचें तो मानवता जीवित रहती है।

नेत्र अधिकोष के मैनेजर अभिमन्यु कुमार ने संचालन के दौरान कहा कि यहां मौजूद सभी नेत्रदाता परिवार वास्तव में उदारता और महानता का प्रतीक हैं। दुख की घड़ी में भी दूसरों को जीवनदान देने का यह निर्णय अनुकरणीय है। यह केवल दान नहीं, बल्कि समाज के लिए अमूल्य योगदान है।

कर्मियों को भी सम्मानित

इस अवसर पर रिम्स के उन कर्मियों को भी सम्मानित किया गया जो नेत्रदान को बढ़ावा देने और कॉर्निया रिट्रीवल में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। इनमें ICU नर्स, तकनीशियन, वार्ड बॉय, काउंसलर और रिट्रीवल टीम शामिल रहे। उनका यह प्रयास दिखाता है कि नेत्रदान केवल चिकित्सकों का कार्य नहीं, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी है जिसमें हर किसी की भूमिका महत्वपूर्ण है।

अंधेरे को रोशनी में बदलने में मदद करें

कार्यक्रम का समापन डॉ. एम. दीपक लकड़ा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि नेत्रदान वास्तव में जीवनदान है और यह कार्य केवल दया, साहस और करुणा के साथ ही संभव है। उन्होंने सभी से अपील की कि वे इस नेक कार्य में शामिल होकर समाज के अंधेरे को रोशनी में बदलने में मदद करें।

राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा

इस विशेष आयोजन के अलावा रिम्स में राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा के अंतर्गत कई जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इनमें नेत्रदान जागरूकता रैली, नर्सिंग कॉलेज और डेंटल कॉलेज में व्याख्यान, सीआरपीएफ कैंप में विशेष सत्र, ओपीडी में नेत्रदान प्रतिज्ञा कैंप, पीजी छात्रों के लिए विशेष सेमिनार तथा विद्यार्थियों के बीच पेंटिंग और पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता शामिल रहे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज के हर वर्ग तक नेत्रदान का संदेश पहुंचाना और इसे एक जनआंदोलन का रूप देना था।

जागरूकता की कमी

आज जब विज्ञान और तकनीक तेजी से आगे बढ़ रही है, तब भी यदि कोई व्यक्ति अंधकार में जीने को मजबूर है तो इसका कारण संसाधनों की कमी नहीं बल्कि जागरूकता की कमी है। नेत्रदान के माध्यम से हम न केवल किसी को दृष्टि दे सकते हैं बल्कि अपने जीवन के बाद भी समाज में रोशनी फैलाते रह सकते हैं।

उम्मीदों और जीवन में उजाला

नेत्रदान एक ऐसा संकल्प है जो मृत्यु के बाद भी जीवन देता है। यह केवल आंखें दान करना नहीं बल्कि किसी के सपनों, उम्मीदों और जीवन में उजाला भरने का माध्यम है। रिम्स, रांची द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि हम सब मिलकर नेत्रदान का संकल्प लें तो कोई भी व्यक्ति जीवन भर अंधकार में जीने को मजबूर नहीं रहेगा।

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