Explore

Search

16/12/2025 11:02 pm

लेटेस्ट न्यूज़

हमारी बीमारियों की असली जड़, कैसे सुधारें अपनी रोजमर्रा की थाली

आज हम सब कहते हैं कि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। हमारे पास हर सुविधा है — दवाइयाँ, अस्पताल, आधुनिक उपकरण और इलाज के नए-नए तरीके। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इतनी तरक्की के बावजूद बीमारियाँ कम होने के बजाय बढ़ती क्यों जा रही हैं? हर घर में कोई न कोई व्यक्ति दवा पर निर्भर क्यों है? इसका जवाब हमारे अपने रसोईघर में छिपा है। हाँ, वही रसोई जहाँ से हमारी सेहत की शुरुआत होती है, अब धीरे-धीरे बीमारी का घर बन चुकी है। इसकी वजह है — मिलावट, गिरावट और घटिया खाद्य सामग्री का इस्तेमाल।

रसोई की असली समस्या: मिलावट और पोषण की कमी

हमारी रसोई की मूलभूत चीजें — नमक, गुड़, तेल, घी, दूध, आटा, पानी और चीनी — जो कभी सेहत की जड़ थीं, अब मिलावट का शिकार हो चुकी हैं। पहले जो चीजें शरीर को पोषण देती थीं, अब वही हमें बीमार कर रही हैं। आज अधिकांश लोग सुबह उठते ही कोई दवा लेते हैं — किसी को ब्लड प्रेशर की, किसी को शुगर की, किसी को गैस्ट्रिक की। लेकिन यह सिलसिला शुरू कहाँ से हुआ? जवाब है: हमारी प्लेट से।

नमक: स्वाद बढ़ाने वाला, सेहत घटाने वाला

आज बाजार में मिलने वाला आयोडीन युक्त या समुद्री नमक रासायनिक प्रक्रिया से गुजरता है। इसमें कई तरह के प्रिज़रवेटिव और प्रोसेसिंग केमिकल होते हैं जो हमारे शरीर में धीरे-धीरे नुकसान करते हैं। इसके बजाय सेंधा नमक (रॉक सॉल्ट) अपनाइए। सेंधा नमक प्राकृतिक होता है और इसमें खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात — नमक को खाने के समय नहीं, बल्कि पकाने के दौरान ही डालें, ताकि उसका प्रभाव नियंत्रित रहे और शरीर पर नकारात्मक असर न पड़े।

गुड़: जितना काला, उतना शुद्ध

आजकल बाजार में सफ़ेद या हल्का पीला गुड़ आसानी से मिल जाता है, लेकिन यही सबसे अधिक मिलावटी होता है। असली गुड़ वह है जो गहरे चॉकलेट रंग का होता है और उसकी खुशबू मिट्टी और गन्ने की होती है। सफ़ेद गुड़ में फिटकरी और केमिकल का प्रयोग होता है, जो शरीर में एसिडिटी और ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ाते हैं। शुद्ध गुड़ न केवल ऊर्जा देता है, बल्कि यह शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है।

तेल: रिफाइंड नहीं, घानी का तेल अपनाएं

आजकल हर घर में रिफाइंड तेल का इस्तेमाल आम बात हो गई है। रिफाइंड तेल कई बार गर्म करने, छानने और रासायनिक प्रक्रिया से तैयार होता है, जिससे उसमें मौजूद प्राकृतिक पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इसके बजाय घानी का फिल्टर तेल जैसे सरसों, तिल या मूंगफली का तेल इस्तेमाल करें। यह तेल कोल्ड प्रेस्ड तकनीक से बनता है, जिसमें पोषक तत्व और प्राकृतिक स्वाद बरकरार रहते हैं। यह हृदय के लिए भी फायदेमंद है।

घी: असली और नकली में फर्क समझें

बाजार में मिलने वाला ज्यादातर घी असल में बटर ऑयल होता है। असली देसी गाय का घी वह होता है जो दही से मथ कर निकाले गए मक्खन से बनाया जाता है। यह घी न केवल पाचन को मजबूत करता है, बल्कि शरीर को ऊर्जा और रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी देता है। विदेशी गाय या सीधे मलाई से बना घी पाचन तंत्र को भारी बनाता है और हृदय पर बोझ डालता है। अगर संभव हो तो घर में ही देसी विधि से घी बनाएं।

दूध: देसी गाय का अमृत या कुछ नहीं

आज बाजार में मिलने वाला दूध कई बार पाउडर मिलाकर तैयार किया जाता है या फिर उसमें रासायनिक संरक्षण होता है। ऐसे दूध से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। अगर देसी गाय का शुद्ध दूध मिल सके तो बहुत अच्छा, नहीं तो दूध न पीना भी बेहतर है। क्योंकि खराब गुणवत्ता वाला दूध शरीर में बलगम, एसिडिटी और एलर्जी बढ़ाता है।

आटा: मोटा पिसा और चोकर सहित

आजकल के लोग सुविधा के लिए पैक्ड आटा या मैदा का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यह आसान रास्ता सेहत के लिए खतरा है। चोकर निकला हुआ या बारीक पिसा आटा फाइबर रहित होता है, जिससे कब्ज और शुगर जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। अपने स्थानीय चक्की से मोटा आटा पिसवाएं और सुनिश्चित करें कि उसमें चोकर न निकाला गया हो। यही असली पौष्टिक भोजन का आधार है।

पानी: ठंडा नहीं, जीवनदायी गुनगुना

फ्रिज का ठंडा पानी जितना राहत देता है, उतना ही नुकसान भी पहुंचाता है। ठंडा पानी पाचन तंत्र को कमजोर करता है और जिगर की कार्यप्रणाली पर असर डालता है। मटके का या गुनगुना पानी पीने की आदत डालिए। यह शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है।

चीनी: मीठे में छिपा ज़हर

सफ़ेद चीनी को “व्हाइट पॉइज़न” कहा जाता है क्योंकि यह प्रोसेसिंग के दौरान अपने सारे प्राकृतिक गुण खो देती है। इसकी जगह गुड़ या देशी शक्कर (पीले टुकड़ों वाली) का उपयोग करें। ये विकल्प रक्त में ग्लूकोज धीरे-धीरे बढ़ाते हैं और शरीर को ऊर्जा भी देते हैं।

थोड़ा बदलाव, बड़ी राहत

अगर हम केवल अपनी रसोई में ये आठ छोटे बदलाव कर लें तो छह महीने में ही फर्क दिखाई देगा। हमारी दवा पर निर्भरता घटेगी, पाचन सुधरेगा, ऊर्जा बढ़ेगी और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। विज्ञान ने हमें कई सुविधाएं दी हैं, लेकिन असली सेहत की जड़ अभी भी हमारी थाली में ही है। अगर थाली शुद्ध है तो जीवन भी स्वस्थ रहेगा।

Leave a Comment