निर्जला एकादशी को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। यह व्रत वर्ष की सभी 24 एकादशियों के व्रत के बराबर फलदायक माना जाता है। इस दिन व्रती को न तो जल पीना चाहिए और न ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। यह व्रत आस्था, आत्मसंयम और शरीर-मन की शुद्धि का प्रतीक है।
पौराणिक महत्व:
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। महाभारत काल में भीमसेन ने अन्य सभी एकादशी व्रतों को कठिन मानते हुए सिर्फ यही एक व्रत किया था। ऋषि व्यास ने उन्हें सलाह दी थी कि यदि वे निर्जला एकादशी का कठोर व्रत रखें तो उन्हें साल की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा। इसलिए इस एक व्रत का पालन करने मात्र से ही अन्य सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है।
व्रत की तिथि और समय (2025 के लिए):
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तिथि: 10 जून, 2025 (मंगलवार)
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पारण का समय: अगले दिन सूर्योदय के बाद, उचित मुहूर्त में
व्रत विधि:
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स्नान व संकल्प – प्रात:काल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
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पूजन – भगवान विष्णु की प्रतिमा का पूजन करें, तुलसी दल अर्पित करें।
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उपवास नियम – दिन भर अन्न और जल का त्याग करें। निर्जला रहें।
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ध्यान व कथा श्रवण – श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णु सहस्रनाम और व्रतकथा का पाठ करें।
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रात्रि जागरण – यदि संभव हो तो रात्रि को जागरण करें।
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पारण – अगले दिन सूर्योदय के बाद जल व फल से व्रत का पारण करें।
निर्जला एकादशी के लाभ:
1. सभी एकादशियों का पुण्य फल:
साल की सभी एकादशियों को न कर पाने वालों के लिए यह एक अद्वितीय अवसर है।
2. आत्मसंयम और मनोबल की वृद्धि:
निर्जल व्रत करने से आत्म अनुशासन की शक्ति बढ़ती है।
3. पाचन और डिटॉक्स:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह व्रत शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है।
4. कर्मों का क्षालन:
पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत से पापों का शमन होता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
व्रत से जुड़ी सावधानियाँ:
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हृदय रोगी, डायबिटीज़, गर्भवती महिला या बुजुर्ग व्यक्ति को डॉक्टर की सलाह से व्रत करना चाहिए।
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निर्जल रहने के दौरान धूप से बचें और घर में ही आराम करें।
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निष्कर्ष:
निर्जला एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आत्म संयम, शुद्धि और ईश्वर के प्रति श्रद्धा का पर्व है। भीमसेन की तरह हम भी अपने व्यस्त जीवन में कम से कम एक दिन उपवास रखकर न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि स्वास्थ्य लाभ भी पा सकते हैं।
