ओवरथिंकिंग वह मानसिक अवस्था है जिसमें विचार रुकते नहीं, बल्कि बार-बार उसी बात पर घूमते रहते हैं। मन एक विषय को छोड़ नहीं पाता और छोटी-सी बात भी बड़ी लगने लगती है। आयुर्वेद कहता है कि सोच मन का स्वभाव है, लेकिन जब सोच मन पर बोझ बन जाए, क्रिया की जगह चिंता पैदा करे और निर्णय करने की क्षमता को धीमा कर दे — तभी वह ओवरथिंकिंग कहलाती है। इससे मन का स्वाभाविक संतुलन टूटता है और विचार मनुष्य की शांति को नष्ट करने लगते हैं।
आयुर्वेद में ओवरथिंकिंग का मूल कारण — वात और राजस का विकार
आयुर्वेद के अनुसार ओवरथिंकिंग मानसिक दोषों के असंतुलन से पैदा होती है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका वात दोष की है, जो मन में हवा की तरह तेज़ी और अस्थिरता पैदा करता है। वात बढ़ने पर मन बेचैन, चंचल तथा असमंजस से भरा रहता है। वहीं राजस गुण मन में उत्तेजना, अधीरता और भय पैदा करता है। जब वात और राजस दोनों बढ़ जाते हैं, मन विचारों के तूफान में फँस जाता है। यह स्थिति चित्त-विक्षेप कहलाती है जिसमें मन स्थिर नहीं रह पाता।
ओज की कमी — लगातार चिंता से जीवन-ऊर्जा का क्षय
ओवरथिंकिंग केवल मानसिक थकान नहीं है, यह शरीर की ओज शक्ति को भी कम करती है। ओज वह सूक्ष्म ऊर्जा है जो मन में स्थिरता, आत्मविश्वास और आनंद लाती है। जब व्यक्ति लगातार चिंता करता है, तो ओज धीरे-धीरे क्षीण होता है, जिससे चेहरे की चमक घटती है, विचार थका हुआ लगता है और मन निराश हो जाता है। यही कारण है कि ओवरथिंकिंग करने वाले लोग अधिक थकान, कमजोरी और उदासी महसूस करते हैं।
पुराने अनुभव ओवरथिंकिंग को कैसे बढ़ाते हैं
आयुर्वेद बताता है कि ओवरथिंकिंग का संबंध स्मृति से गहरा है। जब पुरानी घटनाएँ, तनाव या चोट मन में गहरे अंकित हो जाती हैं, तो स्मृति बार-बार उसी घटना को जीवित रखती है। यह स्थिति स्मृति-विभ्रम कहलाती है। व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति को भी पुराने अनुभवों की नजर से देखने लगता है। यही कारण है कि छोटी-सी बात भी बड़ी लगने लगती है और भविष्य का भय मन पर हावी हो जाता है।
आधुनिक दिनचर्या ओवरथिंकिंग की जननी
ओवरथिंकिंग का सबसे बड़ा स्रोत आधुनिक जीवन-शैली है। देर रात तक जागना, अनियमित दिनचर्या, मोबाइल और सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग, लगातार तनाव, और अकेलापन — यह सब मन के दोषों को असंतुलित करते हैं। हवा, ठंड, अनियमित भोजन और अत्यधिक मानसिक श्रम वात को और बढ़ाते हैं। शरीर असंतुलित हो तो मन भी असंतुलित हो जाता है। इसलिए आयुर्वेद ओवरथिंकिंग को जीवनशैली-जन्य रोग मानता है।
श्वास और ध्यान – मन को स्थिर करने का पहला आयुर्वेदिक उपाय
आयुर्वेद कहता है कि मन को स्थिर करने के लिए प्राण को संतुलित करना आवश्यक है। जब श्वास नियंत्रित होती है, विचार शांत होते हैं। धीमी, गहरी सांस, भ्रामरी प्राणायाम, और अनुलोम-विलोम जैसे अभ्यास मन में स्थिरता लाते हैं। इन्हें प्रतिदिन दस मिनट करने से मन की उथल-पुथल धीमी होकर संतुलन में आती है। मन का उपचार श्वास से शुरू होता है, क्योंकि प्राण ही मन को गतिशील रखता है।
आहार और वात संतुलन – मन को शांत करने की सर्वश्रेष्ठ औषधि
आयुर्वेद में कहा गया है — भोजन शरीर नहीं, मन भी बनाता है। इसलिए वात-शमन करने वाला भोजन ओवरथिंकिंग में अत्यंत प्रभावी है। नियमित भोजन, गर्म सूप, खिचड़ी, तिल का तेल, घी, खजूर, बादाम, गरम दूध, हल्दी वाला दूध — ये सब वात को शांत करते हैं। इनसे मन में स्थिरता और सुकून आता है। जबकि ठंडा, सूखा, बासी, पैकेट फूड, अत्यधिक चाय-कॉफी वात को और बढ़ाते हैं।
नींद – मानसिक राहत की सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक चिकित्सा
ओवरथिंकिंग तब अत्यधिक बढ़ती है जब नींद कम होने लगे। नींद मन और मस्तिष्क दोनों की मरम्मत करती है। आयुर्वेद में नींद को आनंद का स्रोत कहा गया है। रात 10 बजे सोना, सोने से पहले मोबाइल न देखना, हल्का भोजन करना, पैरों और सिर पर तेल लगाना — ये सब मन को गहरी नींद में ले जाते हैं। एक अच्छी नींद आधा मानसिक रोग खत्म कर देती है।
तेल मालिश – मन को सुरक्षा और विश्राम देने वाला उपचार
अभ्यंग यानी तेल मालिश ओवरथिंकिंग में मन का सबसे तेजी से असर करने वाला उपचार है। तिल तेल से सिर, पैर और कंधों की मालिश वात को तुरंत शांत करती है। इससे मन धीरे-धीरे स्थिर होने लगता है। यह उपचार मन को आंतरिक सुरक्षा, स्नेह और विश्राम का एहसास कराता है, जो मानसिक चिंता का मूल उपचार है।
मन को व्यस्त नहीं, उपयोगी बनाना
आयुर्वेद कहता है कि मन को खाली न रहने दें। खाली मन में विचार घुसते हैं। इसलिए मन को रचनात्मक कार्यों में लगाना अत्यंत आवश्यक है। संगीत, लेखन, योग, बागवानी, पढ़ना, कला — ये सब मन का बोझ हल्का करते हैं और विचारों को सकारात्मक दिशा देते हैं।







