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02/10/2025 2:40 pm

“सुनीता विलियम्स का चौंकाने वाला अनुभव: अंतरिक्ष में वेदों की शक्ति?”

अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में कई घटनाएँ ऐसी दर्ज हुई हैं, जो हमें हमारी सीमाओं की याद दिलाती हैं। लेकिन जब एक प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, उत्कृष्ट वैज्ञानिक और स्त्री — सुनीता विलियम्स — स्वयं इस तरह की घोषणा करे कि उसने रामायण और भगवद्गीता पढ़कर जीवन रक्षा की प्रेरणा पाई, तो यह घटना विज्ञान, आध्यात्म और कल्पना के बीच एक अजीब संगम बन जाती है।

यह कहानी उस कल्पना को साकार करती है जिसमें एक विचार निहित है — “वेदों की ओर लौटना” — और कैसे एक अंतरिक्ष यात्री ने, कथित रूप से, आत्मबल और आध्यात्मिक शक्ति को मार्मिक अनुभवों के बीच अपनाया।

चरम संकट और आध्यात्मिक पल

सुनीता विलियम्स ने, कथानुसार, नौ महीने तक अंतरिक्ष में रहने के बाद पत्रकारों को बताया कि उन दिनों में उन्हें ऐसा अनुभव हुआ जैसे वह ईश्वर की इच्छा के अंतर्गत फँसी हों। जब २० दिन गुजर गए, भोजन और पानी सीमित पड़ने लगे। वह “मृत्यु का सामना” करती हुई महसूस कर रही थीं। उस क्षणों में, उन्होंने अपनी परम्परागत धर्मपरायण स्मृतियों — विशेषकर चैत्र नवरात्रि उपवास की — ओर रुख किया।

रात को हल्का भोजन और पानी, और सुबह केवल थोड़ा पानी — इस संयम के बाद उन्होंने कहा कि एक महीना इस तरह बीता और वह आश्चर्यचकित थीं कि इस कठिन परिस्थिति में भी वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्थिर रहने में समर्थ रहीं।

फिर उन्होंने कंप्यूटर खोला और बाइबिल पढ़ने का सोचा। पर जल्दी ही ऊब गईं। उसके बाद रामायण और भगवद्गीता पढ़ने की आकंक्षा हुई। उन्होंने अंग्रेजी अनुवाद डाउनलोड करके पढ़ा, और १०–१५ पृष्ठों के बाद महसूस किया कि वे रोचक वैज्ञानिक विवरणों और ब्रह्मांडीय विचारों से प्रेरित हो रही हैं।

उनका अनुभव यह था कि भगवद्गीता और रामायण में वर्णित गहन दार्शनिक, खगोलशास्त्रीय और ब्रह्मांडीय दृष्टिकोण उन्हें अपने अस्तित्व की सीमाओं से ऊपर ले गए।

खगोल दृश्य, मंत्रोच्चार और रहस्यमयी दृश्य

उनका वर्णन और भी अविस्मरणीय है — अंतरिक्ष से सूर्य को उन्होंने ऐसा देखा मानो “कीचड़ के तालाब में बैठी आकृति”। कभी उन्हें ऊपर से धीमी आवाजें सुनाई देतीं, सिद्ध होती कि वे संस्कृत या हिंदी में थीं। उनके सहयात्री बैरी विलमोर ने कहा कि यह इस कारण हो रहा है क्योंकि वे प्रतिदिन रामायण और भगवद्गीता पढ़ती थीं।

वे बताते हैं कि एक दिन ऐसे गोलाकार प्रकाश कक्ष (इन्हें उन्होंने “तारे” कहा) नीचे उतरे और उन्हें ऐसा अनुभव हुआ कि वे उन प्रकाशों को उल्काओं पर फेंक रहे हैं, और उन उल्काओं का नाश हो गया। नासा से कहा गया कि इस घटना की वैज्ञानिक रूप से जांच की जाएगी।

आठ महीनों के अंदर उन्होंने पूरी रामायण और भगवद्गीता पढ़ ली। इसी दौरान उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ कि अब वे पृथ्वी पर लौट सकती हैं।

अप्रैल में उन्होंने सूर्यास्त के समय एक अद्भुत दृश्य देखा — एक शेर के समान आकृति, जिसमें माता (माताजी) और त्रिशूल थीं, वह पृथ्वी में नीचे उतरती हुई आई। जब वह वातावरण में प्रवेश कर गई, तो अदृश्य हो गई। उन्हें समझ नहीं आया कि यह आकृति कहाँ से आई। वे यह भी कहती हैं कि वह एक “देवदूत” व्यक्ति ही हो सकती थी, जो किसी आकाशीय स्तर से नीचे आई हो।

उन्होंने यह भी बताया कि नांगल (उत्तर प्रदेश / पंजाब क्षेत्र) में चंद्रकला दिखाई देने, 2 मार्च को सनातनी उपवास शुरू होने और अन्य घटनाओं की रिपोर्ट्स उन्हें मिलीं। उन्हें ऐसा लगा जैसे अब पृथ्वी पर उपवास समाप्त करने का सही समय आ गया हो।

उनका अनुभव यही है कि भगवद्गीता और वेदों में वर्णित वे सिद्धांत — जैसे भ्रूण विज्ञान, गहरे समुद्र का विज्ञान, आकाश और ब्रह्मांडीय परतों का ज्ञान — वास्तव में सत्य हैं। उन्होंने नासा में “वेदों की अलौकिक शक्तियों पर शोध विभाग” की स्थापना का प्रस्ताव देने की बात कही।
प्रेरणा, संदेश और सावधानी

यह कहानी हमें निम्न संदेश देती है:

आध्यात्मिक ऊर्जा — कठिन परिस्थितियों में मनुष्य स्वाभाविक रूप से किसी शक्ति या आत्मबल की ओर लौटता है।

ज्ञान अन्वेषण — पुस्तकें, धर्मग्रंथ और दर्शन हमें मानसिक आश्रय देते हैं।

संयम एवं संतुलन — उपवास, ध्यान, आत्मसंयम जैसे उपाय मानसिक स्थिरता बढ़ा सकते हैं।

विज्ञान और धर्म का संवाद — इस कथानक में विज्ञान (खगोल, उल्का, ब्रह्मांड) और धर्मग्रंथ (गीता, वेद) एक साथ अनुभव का माध्यम बनते हैं।

सावधानीपूर्वक विश्लेषण — प्रेरक कहानी स्वीकार करना अलग है, लेकिन उसे तर्क‑विवेक और प्रमाण की कसौटी पर परखना ज़रूरी है।

 

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