जब मस्तिष्क के किसी हिस्से को पर्याप्त रक्त और ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती, तो मस्तिष्क की कोशिकाएँ तुरंत प्रभावित होती हैं और कभी-कभी मर भी जाती हैं। यही स्थिति स्ट्रोक कहलाती है। स्ट्रोक एक चिकित्सकीय आपातकाल है, जिसमें समय बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जितनी जल्दी कार्रवाई होती है, उतना नुकसान कम होता है। दुनिया भर में स्ट्रोक मृत्यु और दीर्घकालिक विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। जीवन शैली, आनुवंशिकी और पर्यावरण जैसे कई घटक मिलकर स्ट्रोक के जोखिम को प्रभावित करते हैं।
स्ट्रोक के प्रकार: इस्केमिक, हेमोरेजिक और ट्रांज़ियंट इस्केमिक अटैक
स्ट्रोक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं: इस्केमिक स्ट्रोक और हेमोरेजिक स्ट्रोक।
इस्केमिक स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क तक पहुँचने वाली धमनियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं, या ब्लॉक हो जाती हैं, जैसे कि कोलेस्ट्रॉल की प्लेट्स जमा होना या रक्त क्लॉट्स की वजह से। ये लगभग अधिकांश स्ट्रोकों का कारण होते हैं।
हेमोरेजिक स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क की किसी धमनियाँ फट जाएँ और रक्त वहाँ फैल जाए। इस प्रकार का स्ट्रोक अक्सर उच्च रक्तचाप, एनेयूरिज़्म, या शिराओं-नसों की कमजोरी के कारण होता है।
इसके अलावा एक तृतीय प्रकार “ट्रांज़ियंट इस्केमिक अटैक (TIA)” है, जिसे कभी कभी “मिनी-स्ट्रोक” कहा जाता है। इसमें लक्षण कुछ समय के लिए होते हैं और फिर ठीक हो जाते हैं, लेकिन यह एक चेतावनी संकेत है कि भविष्य में बड़ा स्ट्रोक हो सकता है।
स्ट्रोक के कौन से कारण है
कई कारण मिलकर स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाते हैं। कुछ ऐसे हैं जो नियंत्रित किए जा सकते हैं, और कुछ ऐसे हैं जो व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं।
नियंत्रण योग्य कारणों में शामिल हैं: उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), मधुमेह का होना, उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर, धूम्रपान, मोटापा, लगातार अस्वास्थ्यकर आहार, अधिक नमक और चिकना भोजन, शारीरिक गतिविधि की कमी, अत्यधिक शराब का सेवन, और तनाव।
अनियंत्रण योग्य नहीं कारणों में आयु (जैसे उम्र बढ़ने के साथ जोखिम बढ़ता है), लिंग (कुछ अध्ययन बताते हैं कि पुरुषों में शुरुआत की जोखिम ज़्यादा हो सकती है, लेकिन महिलाओं में गंभीर परिणाम), पारिवारिक इतिहास, और आनुवंशिक प्रवृत्तियाँ शामिल हैं।
स्ट्रोक के क्या है लक्षण
स्ट्रोक के लक्षण अचानक प्रकट हो सकते हैं, और यदि इन्हें अनदेखा किया जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं। निम्नलिखित लक्षणों पर तुरंत ध्यान देना चाहिए:
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चेहरे, हाथ या पैर में अचानक सुन्नता या कमजोरी, विशेष रूप से शरीर के एक तरफ।
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बोलने या समझने में अचानक समस्या। शब्द गड़बड़ होना या वाक्य पूरा न कर पाना।
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दृष्टि में अचानक परेशानी, जैसे एक या दोनों आँखों से धुंधला देखना।
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चलने में मुश्किल, संतुलन का खो जाना, चक्कर आना, coordination की समस्या।
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अचानक और बिना किसी स्पष्ट कारण के बहुत तीव्र सिरदर्द।
“FAST” नामक acronym अक्सर उपयोग किया जाता है:
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Face (चेहरा) – क्या एक तरफ बौना, या मुस्कुराने में असमर्थ?
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Arm (बाँह) – क्या एक हाथ को उठाने में कमजोरी या झुकाव?
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Speech (भाषण) – क्या भाषा अस्पष्ट हुई है?
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Time (समय) – तुरंत आपातकालीन सेवा को सूचना देना।
स्ट्रोक के रोकथाम के लिए क्या करें
स्ट्रोक से बचाव के उपाय जीवनशैली में बदलाव और नियमित स्वास्थ्य नियंत्रण से संभव हैं:
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नियमित रूप से रक्तचाप, रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) और कोलेस्ट्रॉल की जाँच कराएँ। यदि ये बढ़े हों तो डॉक्टर की सलाह से नियंत्रित करें।
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संतुलित आहार लें: फल-सब्जियाँ, साबुत अनाज, कम वसा और कम नमक वाला खाना, ताज़े खाद्य पदार्थों का उपयोग।
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नियमित व्यायाम करें: सप्ताह में कम-से-कम 150 मिनट मध्यम व्यायाम, जैसे तेज़ चलना, तैराकी या साइक्लिंग।
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धूम्रपान न करें और यदि करते हैं तो छोड़ने की कोशिश करें।
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शराब का सेवन सीमित करें या पूरी तरह बंद करें।
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वजन को स्वस्थ स्तर पर बनाए रखें। जब मोटापा हो, तो उसे कम करने के उपाय करें।
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तनाव प्रबंधन: योग, ध्यान, पर्याप्त नींद और मन की शांति बनाए रखना।
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नियमित नींद और अच्छी जीवनशैली से शरीर को पूरी तरह से आराम और पुनर्स्थापना मिले।
स्ट्रोक के तुरंत क्या उपचार करें
जब स्ट्रोक हो जाए, तो समय महत्वपूर्ण है। “गोल्डन आवर” में इलाज मिलना मस्तिष्क को बचाने में अहम भूमिका निभाता है:
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इस्केमिक स्ट्रोक के मामले में क्लॉट तोड़ने वाली दवाएँ (जैसे Tissue Plasminogen Activator, tPA) अत्यंत ज़रूरी हैं, लेकिन इन्हें सीमित समय (जैसे पहले 4.5 घंटे) के अंदर देना चाहिए।
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एन्डोवैस्कुलर प्रक्रियाएँ: डॉक्टर कैथेटर आदि की मदद से बंद नस को खोलने की कोशिश कर सकते हैं या क्लॉट को शारीरिक रूप से निकाल सकते हैं।
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हेमोरेजिक स्ट्रोक में रक्तस्राव को नियंत्रित करना, मस्तिष्क पर दबाव कम करना, और यदि आवश्यक हो तो सर्जरी शामिल है।
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सहायक चिकित्सा: विरोधी ऊतक-सूजन (anti-swelling) दवाएँ, रक्तचाप नियंत्रित करने वाली दवाएँ, एंटीसेज़र दवाएँ आदि।
स्ट्रोक के बाद इसे कैसे ठीक किया जाए
स्ट्रोक के बाद सुधार की प्रक्रिया अक्सर लंबी होती है। पुनर्वास (rehabilitation) विभिन्न रूपों में होता है और इसका उद्देश्य रोगी को यथासंभव सामान्य जीवन वापस मिल सके:
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शारीरिक चिकित्सा (Physical Therapy): चलने-फिरने, हाथ-पैर की गतिशीलता, संतुलन सुधारने के लिए।
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व Occupational-थेरेपी: दैनिक गतिविधियाँ जैसे कपड़े पहनना, खाना खाना, टॉयलेट आदि कार्यों का अभ्यास।
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भाषा थेरेपी (Speech Therapy): बोलने और समझने की क्षमता बहाल करने के लिए।
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मनोवैज्ञानिक समर्थन: स्ट्रोक के बाद मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है—उदाहरण के लिए डिप्रेशन, चिंता—इनका इलाज और सहायता ज़रूरी है।
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दीर्घकालिक निगरानी: जीवनशैली के बदलाव, दवाएँ, नियमित डॉक्टर चेक-अप।
जागरूकता और समय की अहमियत
स्ट्रोक कोई ऐसी स्थिति नहीं है जिसे नजरअंदाज किया जा सके। समय रहते हमें लक्षणों को पहचानना चाहिए, जोखिम कारकों को नियंत्रित करना चाहिए, जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए, और अगर किसी को लक्षण दिखे तो तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए। जैसे कि “Time is Brain” कहा जाता है—देर करने से मस्तिष्क कोशिकाएँ मरती हैं, लेकिन त्वरित इलाज से बहुत कुछ बचाया जा सकता है। आम लोगों की जागरूकता, सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों, और चिकित्सा सुविधाओं का बेहतर प्रबंधन मिलकर स्ट्रोक से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।








